आशा का दीप जलाया क्यों? मेरे वीराने उपवन में, सुन्दर सा सुमन खिलाया क्यों? प्यार-प्यार है पाप नही है, जिसका कोई माप नही है, यह तो है वरदान ईश का, यह कोई अभिशाप नही है, दो नयनों के प्यालों में, सागर सा नीर बहाया क्यों? मेरे वीराने उपवन में, सुन्दर सा सुमन खिलाया क्यों? मुस्काओ स्वर भर कर गाओ, नगमों को और तरानों को, गुंजायमान कर दो फिर से, धरती के मौन ठिकानों को, शीशे जैसे नाजुक दिल मे, ग़म का अम्बार समाया क्यों? मेरे वीराने उपवन में, सुन्दर सा सुमन खिलाया क्यों? नीलगगन के सपनों को, साकार धरातल तो दे दो, पीत पड़े प्यारे पादप को, निर्मल अमृत जल तो दे दो, रस्म-रिवाजों की माया से, यह घर-बार सजाया क्यों? मेरे वीराने उपवन में, सुन्दर सा सुमन खिलाया क्यों? |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |

पूरा गीत सस्वर पाठ करने योग्य |
जवाब देंहटाएंयह पंक्तियाँ तो बेजोड़ हैं --
मुस्काओ स्वर भर कर गाओ,
नगमों को और तरानों को,
गुंजायमान कर दो फिर से,
धरती के मौन ठिकानों को,
आभार ||
सुन्दर गीत ||
सुन्दर प्रणय गीत सर.........
जवाब देंहटाएंसादर.
बहुत सुंदर रचना ... आभार ...
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar geet !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रचना,सुंदर भाव अभिव्यक्ति,बेहतरीन पोस्ट,....
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: मै तेरा घर बसाने आई हूँ...
मन के इस सूने मन्दिर में,
जवाब देंहटाएंआशा का दीप जलाया क्यों?
मेरे वीराने उपवन में,
सुन्दर सा सुमन खिलाया क्यों?...बहुत सुन्दर शास्त्री जी..लाजवाब..
बहुत सुन्दर ,लाजवाब.......
जवाब देंहटाएंसुन्दर गीत...................
जवाब देंहटाएंलाजवाब....................
bahut bhavpoorn prastuti.badhai.धारा ४९८-क भा. द. विधान 'एक विश्लेषण '
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है।
जवाब देंहटाएंचर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्टस पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं....
आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......
रस्म-रिवाजों की माया से,
जवाब देंहटाएंयह घर-बार सजाया क्यों?
सुन्दर प्रेम गीत .
रविकर जी सस्वर जब इस गीत को विभोर होकर गायेंगे
जवाब देंहटाएंसाथ में हम बैठ उनके जरूर संगत लगायेंगे
आंखे बंद कर अपनी सिर को भी हिलायेंगे
सुंदर गीत !
one of the best from the archives guru ji
जवाब देंहटाएंसुन्दर गीत सुंदर भाव सर.........
जवाब देंहटाएंक्या बात है , लाजवाब शब्द सयोंजन , बेहतरीन रचना .
जवाब देंहटाएं्बहुत सुन्दर भाव संयोजन्।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गीत सर...
जवाब देंहटाएंसादर.
स्वप्न यथार्थ का धरातल अवश्य देखेंगे..
जवाब देंहटाएं