अपना धर्म निभाओगे कब जग को राह दिखाओगे कब अभिनव कोई गीत बनाओ, घूम-घूमकर उसे सुनाओ स्नेह-सुधा की धार बहाओ वसुधा को सरसाओगे कब जग को राह दिखाओगे कब सुस्ती-आलस दूर भगा दो देशप्रेम की अलख जगा दो श्रम करने की ललक लगा दो नवअंकुर उपजाओगे कब जग को राह दिखाओगे कब देवताओं के परिवारों से ऊबड़-खाबड़ गलियारों से पर्वत के शीतल धारों से नूतन गंगा लाओगे कब जग को राह दिखाओगे कब सही दिशा दुनिया को देना अपनी कलम न रुकने देना भाल न अपना झुकने देना सच्चे कवि कहलाओगे तब जग को राह दिखाओगे तब |
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गुरुवार, 19 अप्रैल 2012
"सच्चे कवि कहलाओगे तब" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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आत्मा में चेतना का प्रवाह करती प्रेरणादायी रचना....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर!
कुँवर जी,
सुन्दर गीत.
जवाब देंहटाएंकब का चिंतन छोड़ो.. यही समय है..'अब '
जवाब देंहटाएंकवियों को जिम्मेदारी का अहसास दिलाती सुन्दर रचना .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रेरक रचना ....आभार
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति,प्रेरक अभिव्यक्ति,
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...
sda ki tarh prerak post .mere blog ki nai post par svagat hae.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंBahut sundar...
जवाब देंहटाएंकवि को सार्थक कविता लिखने के लिए प्रेरित करती कविता!...बहुत सुन्दर भावार्थ!...आभार!
जवाब देंहटाएंSUNDAR KAVITA
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सर...
जवाब देंहटाएंप्रेरक रचना...
सादर
अनु
वाह प्रेरक व सुन्दर कविता।
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता !
जवाब देंहटाएंप्रेरक कविता..
जवाब देंहटाएंअनुपम भाव संयोजन किये हैं आपने इस रचना में ...आभार ।
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