![]() अपना धर्म निभाओगे कब जग को राह दिखाओगे कब अभिनव कोई गीत बनाओ, घूम-घूमकर उसे सुनाओ स्नेह-सुधा की धार बहाओ वसुधा को सरसाओगे कब जग को राह दिखाओगे कब सुस्ती-आलस दूर भगा दो देशप्रेम की अलख जगा दो श्रम करने की ललक लगा दो नवअंकुर उपजाओगे कब जग को राह दिखाओगे कब देवताओं के परिवारों से ऊबड़-खाबड़ गलियारों से पर्वत के शीतल धारों से नूतन गंगा लाओगे कब जग को राह दिखाओगे कब सही दिशा दुनिया को देना अपनी कलम न रुकने देना भाल न अपना झुकने देना सच्चे कवि कहलाओगे तब जग को राह दिखाओगे तब |
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आत्मा में चेतना का प्रवाह करती प्रेरणादायी रचना....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर!
कुँवर जी,
सुन्दर गीत.
जवाब देंहटाएंकब का चिंतन छोड़ो.. यही समय है..'अब '
जवाब देंहटाएंकवियों को जिम्मेदारी का अहसास दिलाती सुन्दर रचना .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रेरक रचना ....आभार
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति,प्रेरक अभिव्यक्ति,
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...
sda ki tarh prerak post .mere blog ki nai post par svagat hae.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंBahut sundar...
जवाब देंहटाएंशुक्रवारीय चर्चा-मंच पर
जवाब देंहटाएंआप की उत्कृष्ट प्रस्तुति ।
charchamanch.blogspot.com
कवि को सार्थक कविता लिखने के लिए प्रेरित करती कविता!...बहुत सुन्दर भावार्थ!...आभार!
जवाब देंहटाएंSUNDAR KAVITA
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सर...
जवाब देंहटाएंप्रेरक रचना...
सादर
अनु
वाह प्रेरक व सुन्दर कविता।
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता !
जवाब देंहटाएंप्रेरक कविता..
जवाब देंहटाएंअनुपम भाव संयोजन किये हैं आपने इस रचना में ...आभार ।
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