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सोमवार, 30 अप्रैल 2012
"खो गया जाने कहाँ है आचरण" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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विलुप्त होती सभ्यता पर दर्द भरे मन के उदगार .....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना शास्त्री जी ...
बधाई एवं शुभकामनायें ....
कहीं इस सब के लिए हम ही दोषी तो नहीं..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता
hello tommy this is there web address address , they have 30% disc at the moment , tell them mick told you to ring
जवाब देंहटाएंSARTHAK PRASHN UTHHATI RACHNA HETU HARDIK DHNYVAD .
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सार्थक प्रस्तुति,..बेहतरीन रचना,...
जवाब देंहटाएंMY RESENT POST .....आगे कोई मोड नही ....
आचरण देने की प्रथा ही जब समाप्त कर दी गयी है तब बेचारा आचरण कहां निवास करेगा? अच्छी कविता के लिए बधार्ह।
जवाब देंहटाएंशोभा चर्चा-मंच की, बढ़ा रहे हैं आप |
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति अपनी देखिये, करे संग आलाप ||
मंगलवारीय चर्चामंच ||
charchamanch.blogspot.com
खो गया जाने कहाँ है आचरण?vakayee kahin nahin mil raha.....
जवाब देंहटाएंकितना बड़ा सच व्यक्त किया है, आज के समाज का।
जवाब देंहटाएं"वेल्थ इज़ लास्ट,नथिंग इज़ लास्ट।
जवाब देंहटाएंहेल्थ इज़ लास्ट ,सम थिंग इज़ लास्ट।
केरेक्टर इज़ लास्ट,एवरी थिंग इज़ लास्ट। । "
कहने वाले अपने साथ 'केरेक्टर' भी ले गए अब कहाँ से आए -"आचरण"?
शब्द अपनी प्राञ्जलता खो रहा,
जवाब देंहटाएंह्रास अपनी वर्तनी का हो रहा,
रो रहा समृद्धशाली व्याकरण।
खो गया जाने कहाँ है आचरण?
बिलकुल सही कहा है ...सुंदर रचना ...
..सुंदर रचना ....
जवाब देंहटाएं