मित्रों! सात जुलाई, 2009 को यह रचना लिखी थी! इस पर नामधारी ब्लॉगरों के तो मात्र 14 कमेंट आये थे मगर बेनामी लोगों के 137 कमेंट आये। एक बार पुनः इसी रचना ज्यों की त्यों को प्रकाशित कर रहा हूँ। आशा है कि आपको पसन्द आयेगी! इन्साफ की डगर पर, नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा, उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है, दल-दल दलों का जमघट। संसद में फिल्म जैसा, होता है खूब झंझट। फिर रात-रात भर में, आपस में गुल खिलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा उस ओर जा मिलेंगे।। गुस्सा व प्यार इनका, केवल दिखावटी है। और देश-प्रेम इनका, बिल्कुल बनावटी है। बदमाश, माफिया सब इनके ही घर पलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा, उस ओर जा मिलेंगे।। खादी की केंचुली में, रिश्वत भरा हुआ मन। देंगे वहीं मदद ये, होगा जहाँ कमीशन। दिन-रात कोठियों में, घी के दिये जलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा, उस ओर जा मिलेंगे।। |
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मंगलवार, 24 अप्रैल 2012
"होगा जहाँ मुनाफा उस ओर जा मिलेंगे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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अनुभूतियों को अभिव्यक्ति ने शहर कर दिया है ,
जवाब देंहटाएंनजरवालों को आँखें नजर कर दिया है-
हकीकत से रूबरू कराती संवेदनशील रचना बहुत सुन्दर /
सीधा साधा सच भला किसे न प्रभावित करेगा।
जवाब देंहटाएंखादी की केंचुली में,
जवाब देंहटाएंरिश्वत भरा हुआ मन।
देंगे वहीं मदद ये,
होगा जहाँ कमीशन।
संवेदनशील रचना ||
आभार |
क्या बात है वाह!
जवाब देंहटाएंआपका लेखन 'कमेन्ट' का मोहताज नहीं है..
जवाब देंहटाएंहम खुशनसीब हैं की हमें नित नयी सुन्दर रचनाएँ पढने को मिलती हैं..
बहुत खूब लिखा है आपने !
ऋतू जी से सहमत!
जवाब देंहटाएंपहले तो पढ़ नहीं पाए थे,लेकिन अब पढ़ाने के लिए आभार!कलम यूँ चले तो कौन नहीं कटता इस से...
कुंवर जी,
आपने नेताओं की खाट ख़ूब खड़ी की है.
जवाब देंहटाएंक्या कभी आपने लालची डाक्टरों पर भी कुछ लिखा है ?
विदेश गए डाक्टर देश सेवा के लिए लौटते क्यों नहीं ?
खादी की केंचुली में,
जवाब देंहटाएंरिश्वत भरा हुआ मन।
देंगे वहीं मदद ये,
होगा जहाँ कमीशन।
दिन-रात कोठियों में, घी के दिये जलेंगे।
होगा जहाँ मुनाफा, उस ओर जा मिलेंगे।।्………………वाह ………सबकी बखिया उधेड दी है………शानदार प्रस्तुति।
ऐसा सच हैं जो कभी नहीं बदला हैं और ना बदलेगा ....
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सच कहा है आपने ... उत्कृष्ट लेखन ...
जवाब देंहटाएंगुस्सा व प्यार इनका,
जवाब देंहटाएंकेवल दिखावटी है।
और देश-प्रेम इनका,
बिल्कुल बनावटी है।
और...
बन गए हैं लोकनायक
अब...
जाग रहे हैं लोग, बन्द करो अब भोग
यदि नहीं किया ये योग तो...किनारे लगा दिये जाओगे
सच कहा है ... कितना सार्थक गीत है आज के समय का ... नमस्कार शास्त्री जी ...
जवाब देंहटाएंआज के हालात पर कितनी सटीक टिप्पणी...बहुत सार्थक प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबुधवारीय चर्चा-मंच
पर है |
charchamanch.blogspot.com
Waaah! Bilkul sahi kataksh kiya hai aapne Aajkal ke Netaon par.... Behtreen!!!
जवाब देंहटाएंदिन-रात कोठियों में, घी के दिये जलेंगे।
जवाब देंहटाएंहोगा जहाँ मुनाफा, उस ओर जा मिलेंगे।।bahut achchi.....
बदमाश, माफिया सब इनके ही घर पलेंगे।
जवाब देंहटाएंहोगा जहाँ मुनाफा, उस ओर जा मिलेंगे।।
बहुत बढ़िया प्रस्तुति समकालीन प्रसंगों पर खरी एक दम से .
bahut hee sundar guru ji
जवाब देंहटाएंवाकई ....
जवाब देंहटाएंयह तो आते ही इसीलिए हैं !
पापी पेट का सवाल है और कुछ आता भी नहीं , करें तो क्या करें ..!
आभार बढ़िया रचना के लिए !
खादी की केंचुली में, रिश्वत भरा हुआ मन। देंगे वहीं मदद ये, होगा जहाँ कमीशन।
जवाब देंहटाएं.....कितना बड़ा काम कर रहे है नेता लोग!..बहुत सटिक व्यंग्य!
नेता को पता है कब से
जवाब देंहटाएंलिखी हुवी ये कविता है
इस लिये वो आज भी
अभी भी इसे जीता है।