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बुधवार, 18 अप्रैल 2012
‘‘गंगा की वो धार कहाँ है’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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गंगा की ये हालत देखकर व्यथित हुआ मन ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना ....
जन मानस में इस विषय पर जागृति जगाना चाहिए और हम नागरिकों को प्रयास भी करने चाहिए ....इसकी सफाई के लिए ....
माँ की दुर्दशा ।
जवाब देंहटाएंसजीव चित्रण ।।
गंगा की धार प्रदूषित कर दी गयी है।
जवाब देंहटाएंदर्पण जैसी निर्मल धारा,
जवाब देंहटाएंजिसमें बहता नीर अपारा,
अर्पण-तर्पण करने वाली,
सरल-विरल चंचल-मतवाली,
पौधों में भरती हरियाली,
अमल-धवल आधार कहाँ है?
गंगा की वो धार कहाँ है??
माँ गंगा की दशा और दुर्दशा का बेहद मर्मांतक चित्रण किया है………आभार
ganga ko hum sab ko milkar bachana hai aapne sachitra bahut sandeshparak kavita rachi hai.badhaai
जवाब देंहटाएंपावन गंगा की ऐसी दुर्दशा से मन व्यथित हो उठता है!
जवाब देंहटाएं'गंगा की वो धार कहाँ है?'
सार्थक रचना!...आभार!
हमारी नदियों की दुर्दशा देख मन व्यथित हो उठता है....
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक रचना शास्त्री जी...
हर-हर का हरद्वार कहाँ है?
गंगा की वो धार कहाँ है??
लाजवाब प्रस्तुति.
सादर.
अनु
खो गयी है गंगा..!
जवाब देंहटाएंकलमदान
ज्वलंत समस्या - मधुर रचना द्वारा... आभार.
जवाब देंहटाएंगंगा-यमुना की हालत वाकई सोचनीय है
जवाब देंहटाएंगंगा को तलाशती रचना
वाकई विचारणीय सुंदर प्रस्तुति,....
जवाब देंहटाएंvicharniy sundar prastuti.aabhar कानूनी रूप से अपराध के विरुद्ध उचित कार्यवाही sath hi avlokan karenनारियां भी कम भ्रष्ट नहीं.
जवाब देंहटाएंव्रत लो गंगा साफ करेंगे,
जवाब देंहटाएंनदियाँ दूषित नहीं करेंगे,
जहाँ चाह है, राह वहाँ है।
जहाँ चाह है, राह वहाँ है।
जवाब देंहटाएंJi Han.... Sunder Awhan hai....
गंगा की दुर्दशा का सटीक चित्रण, बधाई.
जवाब देंहटाएंआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 19 -04-2012 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....ये पगडंडियों का ज़माना है .
आशा भी है
जवाब देंहटाएंव्रत लो गंगा साफ करेंगे,
नदियाँ दूषित नहीं करेंगे,
जहाँ चाह है, राह वहाँ है।
पावन जल की धार यहाँ है।।
ले लिया व्रत निभाना होगा
गंगा ही नहीं हर नदी को
प्रदूषित होने से बचाना होगा
मानवता को अगर पृथ्वी पर
आगे भी ठहराना होगा ।
सरल शब्दों में जीवन दायिनी, पापनाशिनी गंगा मय्या का दर्द आपने लेखनी के माध्यम से सचित्र वर्णित किया है, साधुवाद. मैंने भी गत ३० मार्च को एक लेख 'पानी रे पानी' में इस विषय को लपेटते हुए चिंताएं व्यक्त की है.
जवाब देंहटाएंविचारशील रचना आभार जी /
जवाब देंहटाएंसचमुच चिन्ता का विषय है !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना के लिय आपका आभार ....न केवल रचना के लिए वल्कि एक ज्वलंत विषय पर
जवाब देंहटाएंलिखने के लिए भी एक बार फिर से आभार ...