सभी में निहित है प्रीत।
आज
लिखे जा रहे हैं अगीत,
अतुकान्त
सुगीत, कुगीत
और नवगीत।
जी हाँ!
हम आ गये हैं
नयी सभ्यता में,
जीवन कट रहा है
व्यस्तता में।
सूर, कबीर, तुलसी की
नही थी कोई पूँछ,
मगर
आज अधिकांश ने
लगा ली है
छोटी या बड़ी
पूँछ या मूँछ।
क्योंकि इसी से है
उनकी पूछ
या पहचान,
लेकिन
पुरातन साहित्यकारों को तो
बना दिया था
उनके साहित्य ने ही महान।
परिपूर्ण थी
उनकी लेखनी
मर्यादाओं से,
मगर
आज तो लोगों को
सरोकार है
विविधताओं से।
लो हो गया काम,
पुरानों को नमन
और नयों को प्रणाम!!
सूर सूर तुलसी शशी ,उडीगन केशवदास ,
जवाब देंहटाएंअद्य कवि खद्योत सम ,जह तह करत प्रकाश .
कृपया यहाँ भी पधारें -
डिमैन्शा : राष्ट्रीय परिदृश्य ,एक विहंगावलोकन
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
सोमवार, 30 अप्रैल 2012
जल्दी तैयार हो सकती मोटापे और एनेरेक्सिया के इलाज़ में सहायक दवा
सटीक रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सटीक प्रस्तुति.....
जवाब देंहटाएंMY RESENT POST .....आगे कोई मोड नही ....
sarthak post .aabhr.
जवाब देंहटाएंआपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबुधवारीय चर्चा-मंच पर |
charchamanch.blogspot.com
किसी ना किसी पर कटाक्ष करती रचना ......आभार
जवाब देंहटाएंआज यह गाज़ किस पर गिरी .... ? अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअलंकार महँगे हुये , दुर्लभ सारे छंद
जवाब देंहटाएंज्येष्ठ ऋतु कहँ पाइये, बासंती मकरंद.
पुरानों को नमन और नयों को प्रणाम, बहुत सुंदर रचना.
जिन्होने भी हिन्दी को योगदान दिया है, उन सबकी जय जय।
जवाब देंहटाएंजीवन चक्र है इतिहास भी इसके साथ घूमता रहता है ...कल और आयेंगे नगमों की खिलती कलियाँ चुनने वाले मुझसे बेहतर कहने वाले तुमसे बेहतर सुनने वाले .......आज हम पुरानो को याद करते हैं कल हमे भी कोई न कोई याद करेगा .....बहुत कुछ कह गई आपकी अतुकांत कविता
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सटीक प्रस्तुति.....
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