मित्रों! कई वर्ष पहले यह गीत रचा था! पिछले साल इसे श्रीमती अर्चना चावजी को भेजा था। उसके बाद मैं इसे ब्लॉग पर लगाना भूल गया। आज अचानक ही एक सी.डी. हाथ लग गई, जिसमें मेरा यह गीत भी था!इसको बहुत मन से समवेत स्वरों में मेरी मुँहबोली भतीजियों श्रीमती अर्चना चावजी और उनकी छोटी बहिन रचना बजाज ने गाया है। आप भी इस गीत का आनन्द लीजिए! |
तन से, मन से, धन से हमको, माँ का कर्ज चुकाना है। फिर से अपने भारत को, जग का आचार्य बनाना है।। राम-कृष्ण, गौतम, गांधी की हम ही तो सन्तान है, शान्तिदूत और कान्तिकारियों की हम ही पहचान हैं। ऋषि-मुनियों की गाथा को, दुनिया भर में गुंजाना है। फिर से अपने भारत को, जग का आचार्य बनाना है।। उनसे कैसा नाता-रिश्ता? जो यहाँ आग लगाते हैं, हरे-भरे उपवन में, विष के पादप जो पनपाते हैं, अपनी पावन भारत-भू से, भय-आतंक मिटाना है। फिर से अपने भारत को, जग का आचार्य बनाना है।। जिनके मन में रची बसी, गोरों की काली है भाषा, ये गद्दार नही समझेंगे, जन,गण, मन की अभिलाषा , हिन्दी भाषा को हमको, जग की शिरमौर बनाना है। फिर से अपने भारत को, जग का आचार्य बनाना है।। प्राण-प्रवाहक, संवाहक हम, यही हमारा परिचय है, हम ही साधक और साधना, हम ही तो जन्मेजय हैं, भारत की प्राचीन सभ्यता, का अंकुर उपजाना है। फिर से अपने भारत को, जग का आचार्य बनाना है।। वीरों की इस वसुन्धरा में, आयी क्यों बेहोशी है? आशाओं के बागीचे में, छायी क्यों खामोशी है? मरघट जैसे सन्नाटे को, दिल से दूर भगाना है। |
बहुत सुंदर रचना,..अर्चना की मधुर आवाज में लाजबाब प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST,,,,फुहार....: बदनसीबी,.....
बहुत सुंदर.................
जवाब देंहटाएंसादर
मधुर कंठ ...सुंदर अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर आवाज सुंदर अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंवीरों की इस वसुन्धरा में, आयी क्यों बेहोशी है?
जवाब देंहटाएंआशाओं के बागीचे में, छायी क्यों खामोशी है?
मरघट जैसे सन्नाटे को, दिल से दूर भगाना है।
फिर से अपने भारत को, जग का आचार्य बनाना है।……………सुन्दर आवाज़ के साथ खूबसूरत रचना
बहुत सुन्दर गीत और बेहतरीन गायन
जवाब देंहटाएंShukriya...ham dono ki or se..
जवाब देंहटाएंउनसे कैसा नाता-रिश्ता? जो यहाँ आग लगाते हैं,
जवाब देंहटाएंहरे-भरे उपवन में, विष के पादप जो पनपाते हैं,
अपनी पावन भारत-भू से, भय-आतंक मिटाना है।
फिर से अपने भारत को, जग का आचार्य बनाना है।।
ओज और सांगीतिक लय ताल लिए सार्थक प्रस्तुति .सस्वर सुनना नया अनुभव रहा ताजगी देता रहा कितने ही पल .
ram ram bhai
शुक्रवार, 18 मई 2012
ऊंचा वही है जो गहराई लिए है
मॉं का कर्ज़ कभी चुकाया जा सकता है क्या ?
जवाब देंहटाएंमॉं को समर्पित कोई भी चीज़ पूजनीय है ।
मेरी पोस्ट पर स्नेह के लिए धन्यवाद ।
मॉं का कर्ज़ कभी चुकाया जा सकता है क्या ?
जवाब देंहटाएंमॉं को समर्पित कोई भी वस्तु पूजनीय है ।
मेरी पोस्ट के प्रति स्नेह के लिए शुक्रिया ।
सुन्दर गीत व सुन्दर स्वर..
जवाब देंहटाएंसुन्दर आवाज सुन्दर गीत :-)
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकारें ||
सुन्दर!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन .. आवाज़ और गीत दोनों
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर...
जवाब देंहटाएंबस एक शब्द -- लाजवाब!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर मन को छूने वाली रचना !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन,लाजवाब !
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत रचना .....
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