नही दानवों का यहाँ है गुजारा।।
खदेड़ा हैं गोरों को हमने यहाँ से,
लहू दान करके बगीचा सँवारा।
बजें चैन की वंशियाँ मन-सुमन में,
नही हमको हिंसा का आलम गवारा।
दिया पाक को देश का पाक हिस्सा,
अनुज के हकों को नही हमने मारा।
शुरू से सहा आज तक सह रहे हैं,
छोटा समझ कर दिया है सहारा।
दरियादिली बुजदिली मत समझना,
हिदायत हमारी है सीमा न लाँघो,
BAHUT PRERAK RACHNA .AABHAR
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति, सुंदर जोशीली रचना,.....
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST.....काव्यान्जलि.....:ऐसे रात गुजारी हमने.....
बहुत ही सुन्दर रचना | मेरी ताज़ी रचना में जरुर पधारें |
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनायें ....
जवाब देंहटाएंलहू में खून दौड़ता है, बहुत ही सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंbahut badiya prerak prastuti..
जवाब देंहटाएंaabhar!