आज समय का, कुटिल-चक्र चल निकला है। संस्कार का दुनिया भर में, दर्जा सबसे निचला है।। नैतिकता के स्वर की लहरी, मंद हो गयी। इसीलिए नूतन पीढ़ी, स्वच्छन्द हो गयी।। अपनी ग़लती को कोई स्वीकार नहीं करता है। दोष स्वयं के, सदा दूसरों के माथे पर धरता है।। सबके अपने नियम और सबका अन्दाज़ निराला है। इसीलिए हर नेता के मुँह पर लटका इक ताला है।। पत्रकार का मतलब था, निष्पक्ष और विद्वान-सुभट। नये जमाने में इसकी, परिभाषाएँ सब गई पलट।। नटवर लाल मीडिया पर, छा रहे बलात्-बाहुबल से। गाँव शहर का छँटा हुआ, अब जुड़ा हुआ है चैनल से।। गन्दे नालों और नदियों की, बहती है अविरल धारा। न्हाने वाले पर निर्भर है, उसको क्या लगता प्यारा?? |
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मंगलवार, 15 मई 2012
"समय का कुटिल-चक्र" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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अपनी ग़लती को कोई स्वीकार नहीं करता है।
जवाब देंहटाएंदोष स्वयं के, सदा दूसरों के माथे पर धरता है।………सत्य वचन ………सुन्दर प्रस्तुति
नैतिकता के स्वर की लहरी, मंद हो गयी।
जवाब देंहटाएंइसीलिए नूतन पीढ़ी, स्वच्छन्द हो गयी।।
बहुत बढ़िया रचना सर...
सादर.
बहुत बढ़िया सर...............
जवाब देंहटाएंविचारणीय रचना.
सादर.
त्वरित टिप्पणी से सजा, मित्रों चर्चा-मंच |
जवाब देंहटाएंछल-छंदी रविकर करे, फिर से नया प्रपंच ||
बुधवारीय चर्चा-मंच
charchamanch.blogspot.in
नैतिकता के स्वर की लहरी, मंद हो गयी।
जवाब देंहटाएंइसीलिए नूतन पीढ़ी, स्वच्छन्द हो गयी।।
बहुत ही सटीक रचना, वाह !!!!!!!!!!!
आज के जीवन का यथार्थ चित्रण..........
जवाब देंहटाएंनैतिकता के स्वर की लहरी, मंद हो गयी।
जवाब देंहटाएंइसीलिए नूतन पीढ़ी, स्वच्छन्द हो गयी।।
vaah vaah vaah....lajabaab
समय की बलिहारी है,हम पुरानी पीढ़ी को ये सब अनपेक्षित लगता है.आपने छंदों में इस स्वछंदता को बांधा है अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंअपनी ग़लती को कोई स्वीकार नहीं करता है।
जवाब देंहटाएंदोष स्वयं के, सदा दूसरों के माथे पर धरता है।।
Sachaa aur talkh sachhai ko likha hai ... Aaj apni galti koi nahi dekhna chahta ...
गन्दे नालों और नदियों की, बहती है अविरल धारा।
जवाब देंहटाएंन्हाने वाले पर निर्भर है, उसको क्या लगता प्यारा??
बहुत बढ़िया रचना सर...
SVACHHANDTAA KO BHI AAPNE CHHND BADDH KAR DIYAA VAAH .
PARIVAAR DIVAS MUBAARAK .
बहुत बढ़िया रचना...
जवाब देंहटाएंसमय का कुटिल चक्र लेख बहुत पशन्त आया अपने जो आपकल की कलुषित को आपने जो सभी के सामने उसके लिये धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआज नए संस्कार आ गए हैं
जवाब देंहटाएंउल्टी धारा अभी बह रही,
जवाब देंहटाएंअंधों के आघात सह रही।
सटीक !!
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