बढ़ती हुई मँहगाई।
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वादाखिलाफी है
नहीं है सम्बन्घ।
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बहुत बढ़िया...सभी लघु कविताएँ सार्थक और सटीक हैं
जवाब देंहटाएंशोक काल की ग्रह-दशा, हो हलचल दरबार |
जवाब देंहटाएंभ्रष्ट आचरण ले बना, ड्राफ्ट लाभ अनुसार |
ड्राफ्ट लाभ अनुसार, लोक न लोक-तंत्र में |
तंत्र ऊर्जा-हीन, शक्ति न बची मन्त्र में |
खाल खींचता पाल, बकरियाँ लोकपाल की |
मने खैर कब तलक, खबर है शोक-काल की ||
आपकी अनुभूतियाँ अपनी सी ,अब तो महंगाई भी अपनी
जवाब देंहटाएंसी होने लगी है ......
सटीक व सार्थक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसार्थक पंक्तियाँ.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना,..अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बेटी,,,,,
क्या ही रचनाएं हैं सर...
जवाब देंहटाएंसादर.
यह आवरण छटना आवश्यक भी है..
जवाब देंहटाएं..बढ़िया प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएं..बढ़िया प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएंab aur nahee sahaa jaata....jaldee se chhant jaye ye aavaran!
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