सिक्कों में बिकने लगा, दुनिया में ईमान।
लोग रूप की धूप पर, करते हैं अभिमान।।
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सदाचार का हो गया, दिन में सूरज अस्त।
अपनी ही करतूत पर, लोग हो रहे मस्त।।
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तन-मन मैले हो रहे, झूठे हैं उपवास।
मेल-जोल का हो गया, मेला बहुत उदास।।
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पंथ भिन्न तो क्या हुआ, सबका है ये देश।
मेल-जोल से ही यहाँ, बदलेगा परिवेश।।
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भारत माता कर रही, कब से करुण पुकार।
गद्दारों को मार दो, ओ भगवा सरकार।।
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अन्न और जल हो गया, दूषण से भरपूर।
जनसाधारण तो हुआ, आज मजे से दूर।।
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जनता के ही राज में, जनता सुख से दूर।
मजदूरी मिलती नहीं, पढ़े-लिखे मजबूर।।
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मंगलवार, 14 जुलाई 2020
दोहे "बदलेगा परिवेश" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सुन्दर सार्थक सृजन ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएं--
जवाब देंहटाएंपंथ भिन्न तो क्या हुआ, सबका है ये देश।
मेल-जोल से ही यहाँ, बदलेगा परिवेश।।
बहुत ही सुंदर सृजन सर,सादर नमन
बहुत सुंदर दोहे आदरणीय
जवाब देंहटाएंयथार्थ आधारित सार्थक दोहे।
जवाब देंहटाएंसुंदर सटीक।