जो पीड़ा में मुस्काता है, वही सुमन होता है
नयी सोच के साथ हमेशा, नया सृजन होता है
जब आतीं घनघोर घटायें, तिमिर घना छा जाता
बादल छँट जाने पर निर्मल, नीलगगन होता है
भाँति-भाँति के रंग-बिरंगे, जहाँ फूल खिलते हों
भँवरों का उस गुलशन में, आने का मन होता है
किलकारी की गूँज सुनाई दे, जिस गुलशन में
चहक-महक से भरा हुआ. वो ही आँगन होता है
हो करके स्वच्छन्द जहाँ, खग-मृग विचरण करते हों
सबसे सुन्दर और सलोना, वो मधुवन होता है
जगतनियन्ता तो धरती के, कण-कण में बसता है
चमत्कार जो दिखलाता है, उसे नमन होता है
कुदरत का तो पल-पल में ही, 'रूप' बदलता जाता
जाति-धर्म की दीवारों से, बड़ा वतन होता है
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सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक चर्चा मंच पर चर्चा - 3743 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंवाह !बहुत ही सुंदर सर .
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
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