जो पीड़ा में मुस्काता है, वही सुमन होता है
नयी सोच के साथ हमेशा, नया सृजन होता है
जब आतीं घनघोर घटायें, तिमिर घना छा जाता
बादल छँट जाने पर निर्मल, नीलगगन होता है
भाँति-भाँति के रंग-बिरंगे, जहाँ फूल खिलते हों
भँवरों का उस गुलशन में, आने का मन होता है
किलकारी की गूँज सुनाई दे, जिस गुलशन में
चहक-महक से भरा हुआ. वो ही आँगन होता है
हो करके स्वच्छन्द जहाँ, खग-मृग विचरण करते हों
सबसे सुन्दर और सलोना, वो मधुवन होता है
जगतनियन्ता तो धरती के, कण-कण में बसता है
चमत्कार जो दिखलाता है, उसे नमन होता है
कुदरत का तो पल-पल में ही, 'रूप' बदलता जाता
जाति-धर्म की दीवारों से, बड़ा वतन होता है
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बुधवार, 8 जुलाई 2020
ग़ज़ल "रूप की अंजुमन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंवाह !बहुत ही सुंदर सर .
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
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