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निर्धनता के जो रहे, जीवनभर पर्याय।
लमही में पैदा हुए, लेखक धनपत राय।।
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आम आदमी की व्यथा, लिखते थे जो नित्य।
प्रेमचन्द ने रच दिया, सरल-तरल साहित्य।।
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जीवित छप्पन वर्ष तक, रहे जगत में मात्र।
लेकिन उनके साथ सब, अमर हो गये पात्र।।
फाकेमस्ती में जिया, जीवन को भरपूर।
उपन्यास सम्राट थे, आडम्बर से दूर।।
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उपन्यास 'सेवासदन', 'गबन' और 'गोदान'।
हिन्दी-उर्दू अदब पर, किया बहुत अहसान।।
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'रूठीरानी' को लिखा, लिक्खा 'मिलमजदूर'।
प्रेमचन्द मुंशी रहे, सदा मजे से दूर।।
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लेखन में जिसका नहीं, झुका कभी किरदार।
उस लमही के लाल को, नमन हजारों बार।।
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दिव्यता को आपकी वीरुभाई के प्रणाम।
जवाब देंहटाएंveeruvageesh.blogsspot.com
vageeshnand.blogspot.com
nanhemunne.blogspot.com
veerujan.blogspot.com
बहुत आला दर्ज़ा आलमी कलम जनाब की ,आदाब अता करता हूँ।
veeruji05.blogspot.com
बहुत सुंदर रचना। प्रेमचंद जी को नमन।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (०१-०८ -२०२०) को 'बड़े काम की खबर'(चर्चा अंक-३७८०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
वाह बेहतरीन प्रस्तुति, मुंशी प्रेमचंद जी को शत् शत् नमन
जवाब देंहटाएंउपन्यास 'सेवासदन', 'गबन' और 'गोदान'।
जवाब देंहटाएंहिन्दी-उर्दू अदब पर, किया बहुत अहसान।।
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'रूठीरानी' को लिखा, लिक्खा 'मिलमजदूर'।
प्रेमचन्द मुंशी रहे, सदा मजे से दूर।।... प्रेमचंद जी को इससे ज्यादा अच्छी श्रद्धांजलिऔर क्या हो सकती है
सुंदर चर्चा प्रस्तुति
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