लोगों मेरी बात पर, कर लेना कुछ गौर।
ठण्डा करके खाइए, भोजन का हर कौर।।
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अफरा-तफरी में नहीं, होते पूरे काम।
मनोयोग से कीजिए, अपने काम तमाम।।
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कर्मों से ही भाग्य का, बनता है आधार।
कर्तव्यों के बिन नहीं, मिलते हैं अधिकार।।
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देकर पानी-खाद को, फसल करो तैयार।
तब विचार से लाभ क्या, जब हो उपसंहार।।
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बैरी की उसको नहीं, अब कोई दरकार।
जिसके घर को लूटते, उसके ही सरदार।।
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बुधवार, 15 जुलाई 2020
दोहे "फसल करो तैयार" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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आपकी इस प्रस्तुति का लिंक चर्चा मंच पर <a href="http://charchamanch.blogspot.com/2020/07/3764.html”> चर्चा - 3764 </a> में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी|
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
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