जननी-जन्मभूमि
को अपनी,
बच्चों
कभी नहीं बिसराना।
ठाठ-बाट
को छोड़ हमेशा,
साधारण
जीवन अपनाना।।
रोज
नियम से आप सींचना,
अपनी
बगिया की फुलवारी।
मत-मजहब
के गुलदस्ते सी,
वसुन्धरा
है प्यारी-प्यारी।
अपनी
इस पावन धरती पर,
वैमनस्य
को मत उपजाना।
ठाठ-बाट को छोड़ हमेशा,
साधारण
जीवन अपनाना।।
सुख-दुख
का सबके जीवन में,
चक्र
सदा है चलता रहता।
वो
महान जो दोनों को,
सहजभाव
से है हँसकर सहता।
विपदाओं
के कठिन काल में,
कभी
न तुम है घबराना।
ठाठ-बाट को छोड़ हमेशा,
साधारण
जीवन अपनाना।।
पथ
में कंकड़-पत्थर बिखरे,
काँटे
उगे हुए गुलशन में।
पथ
पर आगे बढ़ते जाना,
आशाओं
रखकर मन में।
सत्य-अहिंसा
हर हालत में,
हमको
है हथियार बनाना।
ठाठ-बाट
को छोड़ हमेशा,
साधारण
जीवन अपनाना।।
भारत
के हैं भाग्य विधाता,
होनहार
सब होते बच्चे।
छल-फरेब
को नहीं जानते,
बालक
होते मन के सच्चे।
प्यार
बाँटना सारे जग में,
सबको
अपने गले लगाना।
ठाठ-बाट
को छोड़ हमेशा,
साधारण
जीवन अपनाना।।
|
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शुक्रवार, 17 जुलाई 2020
बालगीत "साधारण जीवन अपनाना" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत ही अच्छी जानकारी chambal expressway
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (१८-०७-२०२०) को 'साधारण जीवन अपनाना' (चर्चा अंक-३७६६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
वाह!सर ,बहुत प्रेरणादायक सृजन ।
जवाब देंहटाएं