भूमिका
गीतों के
लेखन एवं गायन की परम्परा आदिकाल से अनवरत चली आ रही है। मनुष्य ही नही समस्त
चराचर को संगीत आह्लाद प्रदान करता है। संगीत के समानान्तर गीत के महत्त्व को
नकारा नही जा सकता है। इतना ही नही प्रत्येक साहित्यकार गीत रचना की अभिलाषा
रखता है। गीतों के शिल्प कविता को एक नया आयाम प्रदान कर सस्वर गुनगुनाने में
वक्ता एवं श्रोता को अवर्णनीय तथा अकल्पनीय सुख की अनुभूति प्रदान करते है।
डॉ. रूपचन्द्र
शास्त्री 'मयंक' की' अब तक प्रकाशित 14
पुस्तकों का सांगोपांग अध्ययन करने तथा उनके पारिवारिक साहचर्य का सौभाग्य मुझे
प्राप्त हुआ है। पुनः सम्पूर्ण जीवन की सम्पूर्ण साहित्य साधनाएँ अप्रतिम अनुभव
और मन से निकले अनेक मनोभावों का शाब्दिक संयोजन है गीत संग्रह "शब्द धरोहर"।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' की सरस्वती वन्दना "गाऊँगा अब गीत नया" से प्रारम्भ 42 गीतों के गीत संग्रह “शब्द धरोहर" की पाण्डुलिपि सौभाग्य से मुझे प्राप्त हुई।
कवि का क्रान्तिकारी एवं अनुभवी ताने-बाने में पिरोया हुआ यह एक अनूठा गीत
संग्रह है जिसमें आशावाद का अनुपम संचार होता है। संग्रह के सभी गीत पठन एवं
श्रवण से वाह-वाह करने को बाध्य कर देते है। अतः मुझे गीत संग्रह “शब्द धरोहर" के कुछ गीतों की चर्चा करना आवश्यक प्रतीत
होता है।
माँ तुम ही
आधार हो गीत में कवि माँ को गंगा.यमुना के साथ-साथ गीत-गजल और सकल काव्य को आधार
मानते हुए लिखता है-
“मेरी गंगा भी तुम और
यमुना भी तुमए
तुम ही मेरे सकल काव्य की धर हो।
जिन्दगी भी हो तुम बन्दगी भी हो तुमए
गीत.गजलों का माँ तुम ही आधार हो।"
शब्द क्रीड़ा
में महारथ रखने वाले 'मयंक' जी के गीत संग्रह के शीर्षक धरोहर पर अपनी अभिव्यक्ति
प्रकट करते हुए पुस्तक के सार को निम्नलिखित पंक्तियों से व्यक्त करते हैं-
“गीत और गजलों वाला जो
सौम्य सरोवर है।
मन के अनुभावों की इसमें छिपी ध्ररोहर है।।"
जीवन के समस्त
अनुभव एवं क्रियाकलाप और समर्पण को कवि ने "धरोहर शीर्षक" में बखूबी पिरोया है।
अपने विभिन्न गीतों के माध्यम से अपनी राष्ट्रीय भावना की अलख जगाने वाले 'मयंक' जी का देशभक्ति गीत मेरे प्यारे वतन भारत के विभिन्न विद्यालयों में राष्ट्रीय
पर्वां पर विभिन्न वाद्ययन्त्रों के साथ गाया जाता है। गीत की पंक्ति कुछ इस
प्रकार है-
“मेरे प्यारे वतन, जग से
न्यारे वतन।
मेरे प्यारे वतन, ऐ दुलारे वतन।।
अपने पावों को रुकने न दूँगा कहीं,
मैं तिरंगे को झुकने न दूँगा कहीं,
तुझपे कुर्बान कर दूँगा मैं जानो तन।
मेरे प्यारे वतन, ऐ दुलारे वतन।।"
“गीत गाना जानते है" गीत में वेदना को खुशियों में पिरो
देना और वेदना की तरह बतलाते हुए पाठकों के लिए कवि का संदेश कुछ इस प्रकार
प्रकट होता है-
“वेदना की मेढ़ को
पहचानते हैं।
हम खुशी के गीत गाना जानते हैं।।
हर उजाले से अन्धेरा है बँधा,
खाक दर.दर की नहीं हम छानते हैं।
हम खुशी के गीत गाना जानते हैं।।"
मुल्ला और
पंडित के उपदेश कहीं न कहीं आज सामाजिक विद्वेष को बढ़ाने का कार्य कर रहे है
जिससे साहित्यकार का मन खिन्न हो जाता है तथा साहित्य सृजन दुष्कर होने लगता है।
कवि की हिंसा के परिवेशों में गीत की पंक्तियों में स्पष्टतः दिखाई देते है-
“धधक रही है ज्वाला,
मुल्ला-पण्डित के उपदेशों में।
मन का गीत रचें हम कैसे,
हिंसा के परिवेशों में।।"
पर्यावरण के
प्रति जगत को वैज्ञानिक संदेश देते हुए दीवाली में मिट्टी के ही दीये जलाने की
बात और इसके वैज्ञानिक रहस्य तथा भारत की आर्थिक स्थिति को समृद्ध् करने हेतु
रोजगार संवर्धन के लिए मिट्टी के ही दीये जलाना शीर्षक पूर्णरुपेण गेयता को लिए
हुए है-
“देश के धन को देश में
रखना,
बहा न देना नाली में।
मिट्टी के ही दिये जलाना,
अबकी बार दिवाली में।।"
साहित्यकारों
के लिए गद्यकविता, गद्यगीत और नई कविता के अन्तर को समझाते हुए 'मयंक' जी छन्दबद्ध
कविताओं के पक्षधर बन जाते है और लिखते हैं-
“गद्य अगर कविता होगी तो,
कविता का क्या नाम धरोगे,
सूर-कबीर और तुलसी को,
किस श्रेणी में आप धरोगे?"
हर व्यक्ति के
लिए रोटी ही आराध्य है और रोटी के लिए हर प्रकार के छल-छद्म और कर्म किए जाते
है। रोटी का गीत कविता में कवि को सन्देश स्पष्टतः झलकता है-
“जिन्दगी का गीत, रोटी
मे छिपा है।
साज और संगीत, रोटी में छिपा है।।"
रससिद्ध कवि 'मयंक' जी की रचनाएं समाज को परिष्कृत करने में हमेशा योगदान करती रही है। इस
स्वार्थी दुनियाँ में नीयत हमेशा सलामत रहे में पाठकों, गायकों एवं श्रोताओं को
सत्कृष्ट आनन्द बनाने में सहायक सिद्ध होती है।
“मीत बेशक बनाओ बहुत से
मगर,
मित्रता में शराफत की आदत रहे।
स्वार्थ आये नहीं रास्ते में कहीं,
नेक.नीयत हमेशा सलामत रहे।।"
कवि के
दृष्टिकोण में कविता का जीवन अमर होता है और उसको कभी बुढ़ापा नही आता एवं कविता
की रसात्मकता तुकबन्दी के द्वारा ही होती है।
“स्वर.व्यंजन ही तो है
जीवन।
आता नहीं बुढ़ापा जिसको,
तुकबन्दी कहते हैं उसको,
कविता होती है चिरयौवन।।"
“जीवन आशातीत हो गया" गीत में उत्कृष्ट भावानुभूति एवं
मादकता दृष्टिगोचर होती है। पाठकों के मन के तार को झंकृत कर देने और रोम-रोम को
पुलकित कर देने वाली गीत की निम्नलिखित पंक्तियाँ दृष्टव्य है-
“जो लगता था कभी पराया,
जाने कब मनमीत हो गया।
पतझड़ में जो लिखा तराना,
वो वासन्ती गीत हो गया।।"
मनुजता के गीत
को गाने वाले डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी ने विभिन्न प्रकार के जीव-जन्तुओं
और खग-कुल को भी अपने गीतों में स्नेह प्रदान किया है और उनकी अन्तर्दशा को
कौतुहलपूर्ण दृष्टि से देखा है।
“गदराई पेड़ों की डाली
हमें सुहाती हैं कानन में।।
हम पंछी हैं रंग-बिरंगे,
चहक रहे हैं वन-उपवन में।।"
इस संग्रह में
रचो सुखनवर गीत नया, याद आते है जब, गाओ कोई गीत नया, बिरुवा फिर से मुस्काया है,
रचना बन जाया करती है, आओ तिरंगा फहराएँ, हमें पहननी खादी है, आओ हिन्दी दिवस
मनायें, मनायें कैसे हम गणतंत्र, होली, सावन आया है, आया है चौमास, आया है मधुमास,
दीपावली तथा बसन्त का मौसम आदि गीतों में कोमलकान्त पदावली, सरल शब्दों का
प्रयोग, छन्दों का प्रयोग, वार्णिक एवं मात्रिक छन्दों का सुगठित प्रयोग और
मापनी का भरपूर ध्यान रखा गया है और गेयता की दृष्टि से उत्कृष्ट गीतसंग्रह है।
समस्त गीतों में लालित्य, भाव प्रवणता, छन्द एवं लय विधान और कविता के प्राण
तत्व स्पष्टतः झलकते है जिससे सौन्दर्य तथा लालित्य बहुगुणित हो जाता है।
मुझे पूर्ण
आशा एवं विश्वास है कि डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' का सद्यः रचित गीत संग्रह "शब्द धरोहर" पाठकों को अपनी रसात्मकता एवं भावाभिव्यक्ति
से अनिर्वचनीय सुख एवं आनन्द प्रदान कर हिन्दी साहित्य सम्पदा के संवर्धन में
अपना योगदान प्रदान करेगा और समीक्षकों की दृष्टि में भी खरा उतरेगा।
अनन्त शुभकामनाओं सहित।
डॉ. महेन्द्र प्रताप
पाण्डेय 'नन्द'
महासचिव
साहित्य
शारदा मंच, खटीमा (उत्तराखण्ड)
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अति सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति. शास्त्रीजी को बधाई.
जवाब देंहटाएंआदरणीय रूपचंद शास्त्री "मयंक" जी को उनके काव्य "शब्द धरोहर"के प्रकाशन के लिए हार्दिक बधाई ! आ डॉ महेंद्र प्रताप पांडेय "नन्द" जी ने इस पुस्तक की सुन्दर समीक्षा प्रस्तुत की है। आपने हर कविता का सूक्षमता से विश्लेषण किया है। साधुवाद ! --ब्रजेन्द्र नाथ
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