धनु से मकर लग्न में सूरज, आज धरा पर आया। गंगा जी के तट पर, अपनी खिचड़ी खूब पकाओ, खिचड़ी खाने से पहले, तुम तन-मन शुद्ध बनाओ, आसमान में खुली धूप को सूरज लेकर आया। गया शिशिर का समय और ठिठुरन का हुआ सफाया।। -- स्वागत करो बसन्त ऋतु का, जीवन में रस घोलो, तिल-चौलाई के लड्डू को खाकर मीठा बोलो, इस अवसर पर सबके मन में है उल्लास समाया। गया शिशिर का समय और ठिठुरन का हुआ सफाया।। -- खुशियों की डोरी से नभ में अपनी पतंग उड़ाओ, मन में भरकर जोश जीत का जमकर पेंच लड़ाओ, झुण्ड पंछियों का नभ में, यह खेल देखने आया। गया शिशिर का समय और ठिठुरन का हुआ सफाया।। -- कुछ दिन में ध्वज फहरायेंगे, भारतभाग्यविधाता, प्यारा सा गणतन्त्रदिवस भी इसी माह में आता, पर्व सलोना त्यौहारों की गठरी को संग लाया। गया शिशिर का समय और ठिठुरन का हुआ सफाया।। -- |
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वाह
जवाब देंहटाएंत्योहारों ka उल्लेख करती एवं उल्लास भरती समसामयिक मनोहारी कृति..
जवाब देंहटाएंपावन पर्व की शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंVery Nice your all post. I Love it.
जवाब देंहटाएंरोमांटिक शायरी गर्लफ्रेंड के लिए
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(१६-०१-२०२१) को 'ख़्वाहिश'(चर्चा अंक- ३९४८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
बेहतरीन और लाजवाब गीत ।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति आदरणीय
जवाब देंहटाएंमकरसंक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🌷🙏
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली लेखन शैली मुग्ध करती हुई - - साधुवाद आदरणीय। मकरसंक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं - -
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