--फूल
हो गये ज़ुदा, शूल मीत बन गये |
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सादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 22-01-2021) को "धूप और छाँव में, रिवाज़-रीत बन गये"(चर्चा अंक- 3954) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
धन्यवाद.
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"मीना भारद्वाज"
सभ्यता के फेर में, गन्दगी के ढेर में
जवाब देंहटाएंमज़हबों की आड़ में, हार-जीत बन गये
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आइना कमाल है, 'रूप' इन्द्रज़ाल है
धूप और छाँव में, रिवाज़-रीत बन गये
बेहतरीन.. हिन्दी ग़ज़ल... या चाहे गीतिका कह लें...
कमाल की पंक्तियां हैं। साधुवाद आदरणीय शास्त्री जी 🙏
हार्दिक शुभकामनाओं सहित,
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
बहुत बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंवन्दन
जवाब देंहटाएंगज़ब का लेखन
फूल हो गये ज़ुदा, शूल मीत बन गये
जवाब देंहटाएंभाव हो गये ख़ुदा, बोल गीत बन गये
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काफ़िला बना नहीं, पथ कभी मिला नहीं
वर्तमान थे कभी, अब अतीत बन गये
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देह थी नवल-नवल, पंक में खिला कमल
तोतली ज़ुबान की, बातचीत बन गये
दुर्लभ रचना।
अति सुन्दर।
सादर।
सभ्यता के फेर में, गन्दगी के ढेर में
जवाब देंहटाएंमज़हबों की आड़ में, हार-जीत बन गये
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आइना कमाल है, 'रूप' इन्द्रज़ाल है
धूप और छाँव में, रिवाज़-रीत बन गये
यथार्थ का हृदयग्राही चित्रण...
आपकी लेखनी को नमन 🌹🙏🌹
-डॉ शरद सिंह
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति आदरणीय 👌👌
जवाब देंहटाएंप्रणाम शास्त्री जी, सदैव की भांति आपके दोहे ....कम शब्दों में संसार समेट लेते हैं...सभ्यता के फेर में, गन्दगी के ढेर में
जवाब देंहटाएंमज़हबों की आड़ में, हार-जीत बन गये
आइना कमाल है, 'रूप' इन्द्रज़ाल है
धूप और छाँव में, रिवाज़-रीत बन गये...वाह
सभ्यता के फेर में, गन्दगी के ढेर में
जवाब देंहटाएंमज़हबों की आड़ में, हार-जीत बन गये
वाह!!!
हमेशा की तरह बहुत ही लाजवाब गीत।
बहुत सटीक
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