कनकइया की डोर तुम्हारे हाथों में।। -- लहराती-बलखाती, पेंग बढ़ाती है, नीलगगन में ऊँची उड़ती जाती है, होती भावविभोर तुम्हारे हाथों में। कनकइया की डोर तुम्हारे हाथों में।। -- वसुन्धरा की प्यास बुझाती है गंगा, पावन गंगाजल करता तन-मन चंगा, सरगम का मृदु शोर तुम्हारे हाथों में।। कनकइया की डोर तुम्हारे हाथों में।। -- उपवन में कलिकाएँ जब मुस्काती हैं, भ्रमर और तितली को महक सुहाती है, जीवन की है भोर तुम्हारे हाथों में। कनकइया की डोर तुम्हारे हाथों में।। -- प्रणय-प्रेम के बिना अधूरी पावस है, बिन “मयंक” के छायी घोर अमावस है, चन्दा और चकोर तुम्हारे हाथों में। कनकइया की डोर तुम्हारे हाथों में।। -- |
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बुधवार, 6 जनवरी 2021
प्रीत का व्याकरण-गीत "तुम्हारे हाथों में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंअति सुंदर
जवाब देंहटाएंवाह बेहतरीन
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 07.01.2021 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
कनकइया की डोर तुम्हारे हाथों में।।
जवाब देंहटाएंग़ज़ब... क्या पंक्ति निकाली है आदरणीय 🙏
साधुवाद
🙏💐🙏
प्राकृति और प्रेम का आकर्षित गीत ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ...
सशक्त व प्रभावशाली लेखन - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर पंक्तियाँ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर गीत
जवाब देंहटाएंवन्दन
कोमल भावों से युक्त सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंवाह!, अभिनव उपमाएं।
जवाब देंहटाएंसुंदर गीत,सरस सृजन।