तो पत्थर भी बन जाता है। दिल तो है मतवाला गिरगिट, रूप बदलता जाता है।। -- कभी किसी की नहीं मानता, प्रतिबन्धों को नहीं जानता। भरता है बिन पंख उड़ानें, जगह-जगह की ख़ाक छानता। वही काम करता है यह, जो इसके मन को भाता है। दिल तो है मतवाला गिरगिट, रूप बदलता जाता है।। -- अच्छे लगते अभिनव नाते, करता प्रेम-प्रीत की बातें। झोली होती कभी न खाली सबके लिए भरी सौगातें। तन को रखता सदा सुवासित, चंचल सुमन कहाता है। दिल तो है मतवाला गिरगिट, रूप बदलता जाता है।। -- पौध सींचता सम्बन्धों की, रीत निभाता अनुबन्धों की। मीठे पानी के सागर को, नहीं जरूरत तटबन्धों की। बाँध तोड़ देता है सारे, जब रसधार बहाता है। दिल तो है मतवाला गिरगिट, 'रूप' बदलता जाता है।। |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
मंगलवार, 23 मार्च 2021
गीत "मतवाला गिरगिट रूप बदलता जाता है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
कुहरे ने सूरज ढका , थर-थर काँपे देह। पर्वत पर हिमपात है , मैदानों पर मेह।१। -- कल तक छोटे वस्त्र थे , फैशन की थी होड़। लेक...
-
सपना जो पूरा हुआ! सपने तो व्यक्ति जीवनभर देखता है, कभी खुली आँखों से तो कभी बन्द आँखों से। साहित्य का विद्यार्थी होने के नाते...
इस कविता का पारायण करके अभिभूत हो गया हूँ आदरणीय शास्त्री जी । सचमुच दिल तो ऐसा ही होता है ।
जवाब देंहटाएंपौध सींचता सम्बन्धों की,
जवाब देंहटाएंरीत निभाता अनुबन्धों की।
मीठे पानी के सागर को,
नहीं जरूरत तटबन्धों की।
बाँध तोड़ देता है सारे,
जब रसधार बहाता है।
बार बार पढ़ने को मन करे, ऐसी अनुपम रचना। सादर प्रणाम।
दिल की इस दिलदार व्याख्या के लिए दिल से साधुवाद आदरणीय 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और दिलचस्प गीत सृजित किया है आपने ।
जवाब देंहटाएंसादर,
डॉ. वर्षा सिंह
अत्यंत सुन्दर गीत ।
जवाब देंहटाएंदिल को खूब पहचाना आपने ... बढ़िया गीत
जवाब देंहटाएंआदरणीय डॉ रूप चन्द्र शास्त्री जी, नमस्ते👏!
जवाब देंहटाएंआपने दिल की तुलना मतवाले गिरगिट से कर अभिनव प्रयोग किया है। आपसे हमेशा की तरह इस कविता से भी छंद विधान के नए आयामों को सीखने का मौका मिला है। हॄदय तल से साधुवाद!
अच्छे लगते अभिनव नाते,
करता प्रेम-प्रीत की बातें।
झोली होती कभी न खाली
सबके लिए भरी सौगातें।
तन को रखता सदा सुवासित,
चंचल सुमन कहाता है।
दिल तो है मतवाला गिरगिट,
रूप बदलता जाता है।।
सुंदर पंक्तियाँ!--ब्रजेंद्रनाथ
बहुत ही सुंदर सृजन,रंगभरी एकादशी की हार्दिक शुभकामनाएँ सर
जवाब देंहटाएंबहुत ही सारगर्भित रचना हमेशा की तरह, हर छंद बहुत बढ़िया । आपको सादर नमन ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गीत नव व्यंजनाएं समेटे।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर मधुर रचना |
जवाब देंहटाएंदिल तो है मतवाला गिरगिट,
जवाब देंहटाएंरूप बदलता जाता है।।
वाह सुंदर कविता...बधाई