नाटक के इस खेल में, है संयोग-वियोग।। -- विद्यालय में पढ़ रहे, सभी तरह के छात्र। विद्या के होते नहीं, अधिकारी सब पात्र।। -- आपाधापी हर जगह, सभी जगह सरपञ्च।। रंग-मंच के क्षेत्र में, चलता खूब प्रपञ्च।। -- रंग-मंच भी बन गया, जीवन का जंजाल। भोली चिड़ियों के लिए, जहाँ बिछे हैं जाल।। -- रंग-मंच का आजकल, मिटने लगा रिवाज। मोबाइल से जाल पर, उलझा हुआ समाज।। -- कहीं नहीं अब तो रहे, सुथरे-सज्जित मञ्च। सभी जगह बैठे हुए, गिद्ध बने सरपञ्च।। -- नहीं रहे अब गीत वो, नहीं रहा संगीत। रंग-मंच के दिवस की, मना रहे हम रीत।। -- |
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शनिवार, 27 मार्च 2021
दोहे "विश्व रंग मंच दिवस" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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विश्व रंगमच दिवस पर कहे गए आपके ये दोहे समीचीन ही नहीं, इस संसार के कुछ अप्रिय तथ्यों का अनावरण भी हैं शास्त्री जी । एक-एक दोहा पत्थर जैसी चोट करता है ।
जवाब देंहटाएंवाह । एक से बढ़कर एक शानदार दोहे ।
जवाब देंहटाएंरंग-मंच का आजकल, मिटने लगा रिवाज।
जवाब देंहटाएंमोबाइल से जाल पर, उलझा हुआ समाज।।
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कहीं नहीं अब तो रहे, सुथरे-सज्जित मञ्च।
सभी जगह बैठे हुए, गिद्ध बने सरपञ्च।।
यथार्थ को प्रतिबिंबित करते बेहतरीन दोहे...
मुझे प्रसन्नता है कि मेरे छोटे शहर में लोगों की रंगमंच के प्रति भरपूर दिलचस्पी है। यहां के रंगमंच से निकले फिल्म अभिनेता गोविंद नामदेव, आशुतोष राणा, मुकेश तिवारी, श्रीवर्धन त्रिवेदी, पदम सिंह, पीयूष सुहाने ऐसे नाम हैं, जो देश भर में अपनी विशेष पहचान स्थापित कर चुके हैं।
बहुत धन्यवाद आपको कि आपने रंगमंच दिवस पर इतने बेहतरीन दोहे लिखे।
हार्दिक शुभकामनाएं,
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
आप हर विषय पर दोहों की बौछार कर देते हैं ...
जवाब देंहटाएंकमाल कर देते हैं शास्त्री जी ...
अति उत्तम दोहे आ0
जवाब देंहटाएंबेहतरीन दोहे
जवाब देंहटाएंवाह ! उत्तम दोहे
जवाब देंहटाएंअति उत्तम दोहे...रंग मंच से जुड़ें कई स्याह पहलुओं और उससे जुड़ी परेशानियों को बाखूबी चित्रित किया है आपने...आभार...
जवाब देंहटाएं