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बहुत सार्थक दोहे । मौसम , मंहगाई , राजनीति सभी शामिल हैं आज तो।
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (2-3-21) को "बहुत कठिन है राह" (चर्चा अंक-3993) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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कामिनी सिन्हा
गंगा जी में बह रहा, निर्मल-पावन नीर।
जवाब देंहटाएंकाँवड़ लेने जायेंगे, अब बहनों के बीर।।
अति सुन्दर सृजन ।
आदरणीय शास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंप्रत्येक दोहा गहरे अर्थ संजोए हुए है।
गंगा जी में बह रहा, निर्मल-पावन नीर।
काँवड़ लेने जायेंगे, अब बहनों के बीर।
यह दोहा तो आज की दोहावली के शिखर पर विराजित है। हृदय भावविभोर हो गया है इसे पढ़ कर, इसके मर्म को आत्मसात करके....
नमन आपकी लेखनी को 🙏
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
सुन्दर भाव लिए अप्रतिम दोहे, बहुत बहुत बधाई शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंमार्च महीना आ गया, मन है बहुत उदास।
जवाब देंहटाएंफिर भी सबको प्यार से, बुला रहा मधुमास।१।
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महँगाई के दौर में, जपो राम का नाम।
आसमान को छू रहे, ईंधन के अब दाम।२।
यही तो है आज का यथार्थ... मर्मस्पर्शी दोहे.....
सादर नमन 🌹🙏🌹
बहुत कुछ समेटे हुए हैं ये दोहे । निश्चय ही मनन करने योग्य हैं । अभिनंदन आदरणीय शास्त्री जी ।
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