मगर नारियों की यहाँ, रोज लुट रही लाज।१। -- कुछ महिलाएँ हैं अभी, दुनिया से अनजान। घर के बाहर है नहीं, जिनकी कुछ पहचान।२। -- परिणय के पश्चात ही, मिल जाता उपनाम। ढोना इस उपनाम को, अब तो उम्र तमाम।३। -- नारी नर की खान है, सब देते सन्देश। सिर्फ सुनाने के लिए, होते हैं उपदेश।४। -- युगों-युगों से नारि का, होता मर्दन मान। राम रम रहे जगत में, सीता है गुमनाम।५। -- जागो अब तो नारियों, तुम हो दुर्गा रूप। तुम्हें बदलना चाहिए, दुनिया के अनुरूप।६। -- आज समय की माँग है, दो परिवेश सुधार। कर्तव्यों के साथ में, छीनों अब अधिकार।७। -- शक्ति स्वरूपा हो तुम्हीं, माता का अवतार। तुमको ही तो जगत का, करना है उद्धार।८। -- |
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रविवार, 7 मार्च 2021
दोहे "आठ मार्च-विश्व महिला दिवस" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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बहुत सार्थक दोहे । उद्धार करने की बात तो आती है लेकिन रास्ते सब बन्द कर दिए जाते ।
जवाब देंहटाएंप्रेरक दोहे ।
सार्थक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंसुंदर दोहे....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे दोहे...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर, सारगर्भित दोहे..
जवाब देंहटाएंजागो अब तो नारियों, तुम हो दुर्गा रूप।
जवाब देंहटाएंतुम्हें बदलना चाहिए, दुनिया के अनुरूप।
--
शक्ति स्वरूपा हो तुम्हीं, माता का अवतार।
तुमको ही तो जगत का, करना है उद्धार।
बहुत सटीक पंक्तियाँ
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार ( 08 -03 -2021 ) को 'आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है' (चर्चा अंक- 3999) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
सार्थक दोहे ।
जवाब देंहटाएंशक्ति स्वरूपा हो तुम्हीं, माता का अवतार।
जवाब देंहटाएंतुमको ही तो जगत का, करना है उद्धार।८।
सशक्त सृजन,सादर नमन सर
शास्त्री जी प्रणाम, विश्व महिला दिवस पर आपने बहुत खूबसूरती से बता दी हमारी अहमियत...कि
जवाब देंहटाएंयुगों-युगों से नारि का, होता मर्दन मान।
राम रम रहे जगत में, सीता है गुमनाम...वाह
सुन्दर रचना ।
जवाब देंहटाएंस्त्री के सच को बयां करते
जवाब देंहटाएंसुंदर दोहे
आपके सृजन को प्रणाम
सादर