बहुत बड़ा उपकार किया है। नर का चोला देकर भगवन, अनुपम सा उपहार दिया है। -- नारी रूप अगर देते तो, अग्नि परीक्षा देनी होती। बार-बार जातक जनने की, कठिन वेदना सहनी होती।। -- चूल्हे-चौके में प्रतिदिन ही, खाना मुझे बनाना होता। सबको देकर भोजन-पानी, मुझे अन्त में खाना होता।। -- सास-ससुर, और जेठ-ननद की, झिड़की सुन चुप रहना होता। केवल दो आँसू टपकाकर, मन ही मन सब सहना होता।। -- नारी बनकर तो जीवन की छिन ही जाती सब आजादी। इधर-उधर आने-जाने में, बाधाएँ आड़े आ जाती।। -- फिर कैसे उन्मुक्तभाव से, मीठी-मीठी बातें कहते। कदम-कदम पर पहरे होते, हरदम सहमे-सहमे रहते।। -- अपने मन की टीवी-सीडी और सीरियल देख न पाते। समाचार उनकी मर्जी के, देख-देख मन में झुँझलाते।। -- दाढ़ी-मूछ उगाकर मुख पर, मर्दाना शृंगार दिया है।। नर का चोला देकर भगवन, अनुपम सा उपहार दिया है। -- |
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शनिवार, 6 मार्च 2021
कविता "मर्दाना शृंगार दिया है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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व्यंग्यात्मक गीत बढ़िया है . नारी का जीवन आसान नहीं न .
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंस्त्रियों की व्यथा, दुर्दशा और नियति पर कटाक्ष करते इस गीत के लिए साधुवाद 🙏
आप स्त्रियों की मनोदशा को समझने में सक्षम श्रेष्ठ रचनाकार हैं... नमन आपको 🙏
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
स्त्री जीवन के यथार्थ को व्यंजनात्मक शैली में काव्यात्मक अभिव्यक्ति देने के लिए आपको सादर नमन 🙏🌹🙏
जवाब देंहटाएंशुभकामनाओं सहित
- डॉ (सुश्री) शरद सिंह
स्त्री जीवन की हर परिस्थिति का शानदार अवलोकन किया है आपने, आदरणीय शास्त्री जी ..व्यंग्यात्मक शैली में लिखी स्त्रियों को सम्मान स्वरूप यह रचना का मूल्य नहीं..सादर नमन..
जवाब देंहटाएंशानदार अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंवेदना और कटाक्ष एक साथ
वाह!बहुत ही सुंदर सृजन सर।
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंवाह श्रीमान क्या खूब वर्णन किया है नारी जीवन का। बहुत खूब सुंदर कविता 🙏
जवाब देंहटाएंवाह... मान्यवर व्यंगात्मक सृजन,नारी का सम्मान दोनो बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर! व्यंगय में वेदना, और वेदना में व्यंग्य, जैसे यिन और यांग
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर सृजन सर !
हटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएं