प्रतिज्ञा के दिवस पर, मत देना सन्ताप।
चमक-दमक की भीड़ में, बिछड़ न जाना आप।१।
जीवन के संग्राम को, समझ न लेना खेल।
जीवनसाथी से सदा, रखना हरदम मेल।२।
ताल-मेल के साथ में, पथ बनता आसान।
तन की सभी थकान को, हर लेती मुस्कान।३।
बेमन से देना नहीं, वचन किसी को मित्र।
जिसमें तुम रँग भर सको, वही बनाना चित्र।४।
सोच-समझकर थामना, अनजाने का हाथ।
जीवनसाथी से बँधा, जीवनभर का साथ।५।
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बेमन से देना नहीं, वचन किसी को मित्र।
जवाब देंहटाएंजिसमें तुम रँग भर सको, वही बनाना चित्र
सुंदर भाव..
्वाह बहुत खूबसूरत चित्रण किया है।
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब वाह!
जवाब देंहटाएंसब शब्दों का मान रखें हम
जवाब देंहटाएंचुप रहने का शपथ ले, करूं खत्म सन्ताप |
जवाब देंहटाएंपत्नी जितना भी बके, रहूँ पड़ा चुपचाप |
रहूँ पड़ा चुपचाप, मानता रविकर आज्ञा |
करूँ ना कोई पाप, तोड़ कर बड़ी प्रतिज्ञा |
रही ख़ुशी से बिता, पार्टी शॉपिंग गहने |
लेती पूरा बोल, हमें कहती चुप रहने ||
बहुत सुन्दर संदेश!
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण उद्बोधन है शास्त्री जी |
जवाब देंहटाएंआशा
बहुत ही भावपूर्ण सन्देश,आभार आपका।
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि कि चर्चा कल मंगलवार 12/213 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है
जवाब देंहटाएंवाह वाह क्या बात है गुरु जी,कितना खूबसूरत प्रॉमिस डे मनाया
जवाब देंहटाएंगौर कीजिएगा....
गुज़ारिश : ''........तुम बदल गये हो..........''
हमेश की ही तरह धाराप्रवाह
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर व् भावात्मक प्रस्तुति अफ़सोस ''शालिनी''को ये खत्म न ये हो पाते हैं . आप भी जाने संवैधानिक मर्यादाओं का पालन करें कैग
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी सलाह इस प्रतिज्ञा दिवस पर
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंसोच-समझकर थामना, अनजाने का हाथ।
जीवनसाथी से बँधा, जीवनभर का साथ।५।
प्रेम दिवस पखवाड़े पे एक से बढ़के एक रचना ला रहें हैं आप .बधाई .
बढियां जी।
जवाब देंहटाएंताल-मेल के साथ में, पथ बनता आसान।
जवाब देंहटाएंतन की सभी थकान को, हर लेती मुस्कान।३।
बेमन से देना नहीं, वचन किसी को मित्र।
जिसमें तुम रँग भर सको, वही बनाना चित्र।४।
बेहद सार्थक ... एवं सशक्त पंक्तियां
आभार आपका इस उत्कृष्ट पोस्ट के लिये
सादर
बहुत सुंदर भावों से रची हुई रचना ! हर किसी को सोच-समझकर ही कोई वादा करना चाहिए....
जवाब देंहटाएं~सादर!!!