आई है
फिर सुबह सुहानी, बैठे
हैं हम इन्तज़ार में।
हार गये थककर दो नैना, दीवाने हो गये प्यार में।।
तन रूखा है-मन भूखा है, उलझे काले-काले गेसू,
कैसे आयें पास तुम्हारे, फँसे हुए हम बीच धार में।
सपनों क दुनिया में हम तो, खोये-खोये रहते हैं,
नहीं सुहाता कुछ भी हमको, मायावी संसार में।
ना ही चिठिया ना सन्देशा, ना कुछ पता-ठिकाना है,
झुलस रहा है बदन समूचा, शीतल-सुखद बयार में।
सूरज का नहीं "रूप" सुहाता, चन्दा
अगन लगाता है,
वीराना है मन का गुलशन, मस्त बसन्त बहार में।
|
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बुधवार, 27 फ़रवरी 2013
"मस्त बसन्त बहार में..." (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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हर मौसम पर आपकी प्रस्तुति विशेष होती है-
जवाब देंहटाएंबसंत ऋतु पर भी-
आभार गुरूजी ||
patjhad saavan basant bahaar....ek baras ke mausam chaar...paanchva mausam pyaar ka...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब जनाब
जवाब देंहटाएंमेरी नई रचना
ये कैसी मोहब्बत है
खुशबू
शुबह तो मैने युही ताक लिया फूलों की तरफ
जवाब देंहटाएंपता मुझे तब चला की जब माँ ने चाय के लिए आवाज लगाई
अब भी उनके प्रेम में डूबा हवा हूँ में चला गया था उनकी तरफ
मेरी नई रचना
ये कैसी मोहब्बत है
अति सुंदर चित्रण
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुतीकरण,हर मौसम की छटा निराली होती है.
जवाब देंहटाएंएक बात पूछना था मान्यवर आपका यह ब्लॉग इन्टरनेट एक्स.में हैंग हो जाता है,जबकि क्रोम में बहुत सहजता से खुलता है.मैं आबू धाबी में रहता हूँ,अन्य पेज के साथ ऐसा नही होता है.
आदरणीय गुरुदेव श्री आपकी हर प्रस्तुति मन भावन एवं ह्रदय स्पर्शी होती है. यूँ ही आपकी रचनाएँ पढ़ने के लिए मिलती रहें. सादर
जवाब देंहटाएंबसन्त बहार, प्यार का संसार, सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंBAHUT SUNDAR RACHNA
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंदिनांक 28 /02/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
बसंत का रंग चढा हुआ है।
जवाब देंहटाएंअब तो शास्त्री साहब, लू का मौसम आने वाला है, तब यह कविता ही ठण्ड पहुंचायेगी.
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट 27 - 02- 2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें ।
बहुत ही सुन्दर रचना....
जवाब देंहटाएं:-)
मौसम का सुन्दर चित्रण !
जवाब देंहटाएंlatest post मोहन कुछ तो बोलो!
latest postक्षणिकाएँ
mausham ko bkhubi bya kari sundar prastuti," hamare shahar ka badal to awara hai kya jane,kis saksh ko bhigona hai kis ghar ko bachana hai'888_
जवाब देंहटाएंना ही चिठिया ना सन्देशा, ना कुछ पता-ठिकाना है,
जवाब देंहटाएंझुलस रहा है बदन समूचा, शीतल-सुखद बयार में .....बयार में झुलसने की बात में जो विरोधाभास है उसने बहुत प्रभावित किया ...बहुत सुंदर ..भावपूर्ण
अपने ब्लॉग का पता भी छोड़ रही हूँ .......यदि पसंद आये तो join करियेगा ....मुझे आपको अपने ब्लॉग पर पा कर बहुत ख़ुशी होगी .
http://shikhagupta83.blogspot.in/
वासंता रंग !
जवाब देंहटाएं