ढल गयी उम्र तो, गीतों में रवानी आयी।
याद गुजरे हुए
लम्हों की कहानी आयी।।
जब भी छेड़ी है
मधुर तान किसी भँवरे ने,
शोख कलियों के
मुखौटों पे जवानी आयी।
जब भी आकाश पे
छायें हैं सघन-घन काले,
दिल में
ज़ज़्बात की बारात सुहानी आयी।
टूट जाते हैं
सभी ग़म के थपेड़े खाकर,
हमको बिगड़ी
हुई किस्मत न बनानी आयी।
मैं दिवानों
की तरह रोज़ ग़ज़ल लिखता हूँ,
किन्तु लिखनी
न अभी नज़्म पुरानी आई।
हमने जब
"रूप" को देखा तो होश खो बैठे,
क्या करें.
आँख भी उनसे न मिलानी आयी।
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बुधवार, 20 फ़रवरी 2013
"ग़ज़ल-लम्हों की कहानी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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वाह वाह आदरणीय शास्त्री जी बहुत मस्त ग़ज़ल लिखी है दाद कबूल करें
जवाब देंहटाएंसुंदर ग़ज़ल...लम्हों में पिघलती हुई सी...
जवाब देंहटाएं~सादर!!!
वाह आदरणीय गुरुदेव श्री वाह आनंदम उर आनंद समा गया, लाजवाब ग़ज़ल हेतु ढेरों दिली दाद के साथ साथ हार्दिक बधाई भी स्वीकारें. सादर
जवाब देंहटाएंबढ़िया है |
जवाब देंहटाएंआभार आपका ||
बहुत सुंदर रचना ...
जवाब देंहटाएंआदरणीय मान्यवर क्या गजल की प्रस्तुति की धन्य है आप की लेखनी.
जवाब देंहटाएंक्या कहने, बहुत बढिया
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत भाव भरे हैं।
जवाब देंहटाएंबड़े नाजुक ख्याल लिए रचना |बहुत भावपूर्ण |
जवाब देंहटाएंआशा
वहा वहा क्या खूब लिखा है जी आपने सुबान अल्ला
जवाब देंहटाएंमेरी नई रचना
प्रेमविरह
एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ
हमने जब "रूप" को देखा तो होश खो बैठे,
जवाब देंहटाएंक्या करें. आँख भी उनसे न मिलानी आयी।,,,,,
लाजवाब ग़ज़ल के लिए मेरी और से दिली दाद कबूल फरमाए,,,
दूर से वे लम्हे और स्पष्ट से दीखते हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति .दामिनी गैंगरेप कांड :एक राजनीतिक साजिश ? आप भी जानें हमारे संविधान के अनुसार कैग [विनोद राय] मुख्य निर्वाचन आयुक्त [टी.एन.शेषन] नहीं हो सकते
जवाब देंहटाएंसुंदर !
जवाब देंहटाएंआज तो बसन्त का असर दिख रहा है।
जवाब देंहटाएंbahut umda guru ji
जवाब देंहटाएंगुज़ारिश : ''..महाकुंभ..''
Kya bat hai Shastrijee, aaj mood kuch roomani hai. Bahut sunder.
जवाब देंहटाएंआप की ये खूबसूरत रचना शुकरवार यानी 22 फरवरी की नई पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है...
जवाब देंहटाएंआप भी इस हलचल में आकर इस की शोभा पढ़ाएं।
भूलना मत
htp://www.nayi-purani-halchal.blogspot.com
इस संदर्भ में आप के सुझावों का स्वागत है।
सूचनार्थ।
वाह! बहुत खूब. इसी पर एक शेर मेरी ओर से आपको सादर भेंट:
जवाब देंहटाएंउम्र गुजर गयी रोटी के जद्दोजहद में "नीरज" ,
याद नहीं मुझे कब बचपन आया, कब जवानी आयी.
सादर
नीरज कुमार 'नीर'
www.kavineeraj.blogspot.in
रंग देती है हिना पत्थर पे पिस जाने के बाद!
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन गजल....
जवाब देंहटाएं:-)