वासन्ती परिधान ओढ़कर,
सूरज ने भी रंग दिखाया।
मुझको यह आभास होगया-
अब बसन्त का मौसम आया।।
पहिन बसन्ती-पीली
साड़ी,
फूली सरसों मनभावन
है।
गीत और संगीत बसन्ती,
मौसम लोक-लुभावन सा
है।
गेहूँ लहर-लहर
बलखाते,
भँवरा फूलों पर
मँडराया।
मुझको यह आभास हो
गया-
अब बसन्त का मौसम
आया।।
आम,
नीम भी बौराए है,
तरुवर नव पल्लव पाये है।
पीपल,गूलर भी हर्षित हैं,
भँवरे गुल पर आकर्षित हैं।
सेमल में भी फूल खिले हैं,
जंगल में पलाश मुस्काया।
मुझको यह आभास होगया-
अब बसन्त का मौसम आया।।
नील-गगन से छँटा कुहासा,
कोयल मीठे स्वर में गातीं,
हिमगिरि साफ दिखाई देते,
नदिया कल-कल नाद सुनातीं।
हीटर,
गीजर बन्द हो गए ,
सरदी ने भी कोप घटाया।
मुझको यह आभास होगया-
अब बसन्त का मौसम आया।।
|
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
गुरुवार, 7 फ़रवरी 2013
"वासन्ती परिधान" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि &qu...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
nice.
जवाब देंहटाएंपहिन बसन्ती-पीली साड़ी,
जवाब देंहटाएंफूली सरसों मनभावन है।
गीत और संगीत बसन्ती,
मौसम लोक-लुभावन सा है।
बहुत सुंदर..अगर बसंत नहीं भी आया तो आपके इस आमन्त्रण से आ ही जायेगा..
आपकी रचना पढ़कर अब मुझे भी ये
जवाब देंहटाएंआभास हो गया की बसंत का मौसम आ गया...
बहुत ही सुन्दर और बेहतरीन रचना...
:-)
बसन्त का बहुत ही सुन्दर ढंग से स्वागत,मनमोहक प्रस्तुती।
जवाब देंहटाएंसुंदर चित्रण बसंत का ....
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना शास्त्री जी ।
बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति .आभार राजनीतिक सोच :भुनाती दामिनी की मौत आप भी जाने अफ़रोज़ ,कसाब-कॉंग्रेस के गले की फांस
जवाब देंहटाएंbasant ki bhavpurn abhivyakti,
जवाब देंहटाएंवाह जी सुदंर कविता
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबासन्ती परिधान समेटे धरा शुभ्र है..
जवाब देंहटाएंबसंत का आगमन दर्शाती खूबसूरत कविता
जवाब देंहटाएंhttp://guzarish6688.blogspot.in/2013/02/blog-post_7.html
स्वागत बसन्त...
जवाब देंहटाएंबसंत के आगमन का आभास दिलाती सुंदर कविता,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST: रिश्वत लिए वगैर...
इन बासन्ती परिधानों में,
जवाब देंहटाएंखेतों में, इन खलिहानों में
देता है ऋतुराज दिखाई
छटा बसंती मन को भाई
शहरों में बस सन्नाटा है
कंकरीट ने वन पाटा है
सिर्फ गाँव ही कहता फिरता
अब बसंत का मौसम आया.....
सुंदर बासंती रचना.
पहिन बसन्ती-पीली साड़ी,
जवाब देंहटाएंफूली सरसों मनभावन है।
गीत और संगीत बसन्ती,
मौसम लोक-लुभावन सा है।
बहुत सुंदर..
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति आज शुक्रवार के चर्चा मंच पर ।।
जवाब देंहटाएंआम, नीम भी बौराए हैं .. जाने किस अतीत में छुपी खुशबू आ गयी पढ़ते पढ़ते! :)
जवाब देंहटाएंआ गया जी बसन्त का मौसम आगया। बहुत बढिया।
जवाब देंहटाएंसुंदर वासंती गीत ऋतुराज के स्वागत के लिये ।
जवाब देंहटाएं