अब पढ़ाई और लिखाई छोड़ ना।
सीख ले अब पत्थरों को तोड़ना।।
काम मिलता ही नहीं है, शिक्षितों के वास्ते,
गुज़र करने के लिए, अवरुद्ध हैं सब रास्ते,
इस लिए मेहनत से नाता जोड़ ना।
सीख ले अब पत्थरों को तोड़ना।।
समय कटता है हमारा पत्थरों के साथ
में,
वार करने को जिगर पर हथौड़ा है हाथ
में.
देखकर नाज़ुक कलाई मोड़ ना।
सीख ले अब पत्थरों को तोड़ना।।
कोई रिक्शा खींचता है, कोई बोझा ढो रहा,
कोई पढ़-लिखकर यहाँ पर भाग्य को है
रो रहा,
आ हमारे साथ श्रम को ओढ़ ना।
सीख ले अब पत्थरों को तोड़ना।।
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सुन्दर ...मार्मिक ...
जवाब देंहटाएंवहा क्या बात है बहुत ही अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबी एड। बैंक म ए नम्बर आयेगा नहीं
फिर तुम पेट भर के खायेगा नहीं इस लिए
खेतो मैं हल चलाना तू ना छोड़ना
सीख ले अब पत्थरों को तोड़ना।।
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जवाब देंहटाएंगुज़ारिश : !!..'बचपन सुरक्षा' एवं 'नारी उत्थान' ..!!
कितने ही भावों को सम्मिलित कर लिया आपने शास्त्री सर! बहुत सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएं~सादर!!!
बहुत ही सुन्दर भावों को समेटे हुए बेहतरीन प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंकाम मिलता ही नहीं है, शिक्षितों के वास्ते,
जवाब देंहटाएंगुज़र करने के लिए, अवरुद्ध हैं सब रास्ते,
इस लिए मेहनत से नाता जोड़ ना।
सीख ले अब पत्थरों को तोड़ना।।
आज की तो यही कडवी सच्चाई है।
बहुत सुन्दर बद्दुवायें ये हैं उस माँ की खोयी है जिसने दामिनी , कैग [विनोद राय] मुख्य निर्वाचन आयुक्त [टी.एन.शेषन] नहीं हो सकते
जवाब देंहटाएंपत्थरो को तोड़ना -
जवाब देंहटाएंसटीक अभिव्यक्ति ||
आभार आदरणीय ||
इस टिप्पणी को लेखक ने हटा दिया है.
जवाब देंहटाएंआ हमारे साथ श्रम को ओढ़ ना।
हटाएंसीख ले अब पत्थरों को तोड़ना।।
बहुत उम्दा सटीक प्रस्तुति,,,
सुन्दर रचना हुज़ूर |
जवाब देंहटाएंTamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
बहुत सुन्दर रचना !!
जवाब देंहटाएंसार्थक और सटीक कविता शास्त्री जी.........
जवाब देंहटाएंसाभार ...!
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि कि चर्चा कल मंगल वार 19/2/13 को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका हार्दिक स्वागत है
जवाब देंहटाएंकटु सत्य
जवाब देंहटाएंआरछन नही माँगना ..... पत्थरों को तोड़ना।।.
जवाब देंहटाएंrecent post
फागुन .
शिक्षित हो कर श्रम नहीं करना चाहते ..... भले ही बाबू के पद पर ही काम मिले .... श्रम करने को प्रेरित करती सुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंगहन और उत्तम अभिव्यक्ति ...!!
जवाब देंहटाएंसुंदर कटाक्ष करती मार्मिक कविता.
जवाब देंहटाएंराह में पत्थर पड़े हों, तो सजाऊँ राह कैसे..
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