अच्छा किया जो आपने खंजर उठा लिया
हमने भी अपने हाथ में नश्तर उठा लिया
ज़ुल्मों-सितम की जब सभी हद पार हो गयीं
करने को अब मुकाबला बख़्तर उठा लिया
फौलाद सा बना लिया हमने तो मोम दिल
काँधे पे हमने धूप का गठ्ठर उठा लिया
हम पर्बतों के संग में करते निवास हैं
बस इसलिए ही हाथ में पत्थर उठा लिया
जब "रूप" पर उठी नज़र बदनीयती की थी
हमने मुकाम छोड़कर बिस्तर उठा लिया
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मंगलवार, 12 मार्च 2013
"हाथ में खंजर उठा लिया " (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बढ़िया गजल |
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय-
जवाब देंहटाएंसुन्दर ग़ज़ल
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वाह ... बेहतरीन
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुती,आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी ...बेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंभावनाओ से ओत -पोत बहुत उम्दा प्रस्तुति आभार
जवाब देंहटाएंआज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
अर्ज सुनिये
सुन्दर !!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना..
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचना, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत खूब. बेहतरीन !
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (13-03-13) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ |
सुंदर गजल गुरु जी
जवाब देंहटाएंक्या बात
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
सच है दृढ़ता से ही जीवन सम्भव है।
जवाब देंहटाएंशनदार गज़ल..
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंसादर जन सधारण सुचना आपके सहयोग की जरुरत
साहित्य के नाम की लड़ाई (क्या आप हमारे साथ हैं )साहित्य के नाम की लड़ाई (क्या आप हमारे साथ हैं )
बहुत सुन्दर ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंबड़ी गूढ़ बात कही है !
जवाब देंहटाएंबड़ी गूढ़ बात कही है !
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