बौरायें हैं सारे तरुवर,
पहन सुमन के हार।
मोह रहा है सबके मन को बासन्ती शृंगार।।
गदराई है डाली-डाली,
चारों ओर सजी हरियाली,
कुहुक रही है कोयल काली,
नीम-बेर-बेलों पर भी आया
है नया निखार।
मोह रहा है सबके मन को बासन्ती शृंगार।।
हँसते गेहूँ,
सरसों खिलती,
तितली भी फूलों से मिलती,
पवन बसन्ती सर-सर चलती,
सबको गले मिलाने आया,
होली का त्यौहार।
मोह रहा है सबके मन को बासन्ती शृंगार।।
निर्मल जल की धारा बहती,
कभी न थकती चलती रहती,
नदिया तालाबों से कहती,
"चरैवेति" पर टिका हुआ है सारा ही संसार।
मोह रहा है सबके मन को बासन्ती शृंगार।।
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शनिवार, 9 मार्च 2013
"बासन्ती शृंगार" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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बहुत ही सुन्दर बसंती श्रृंगार,आभार.
जवाब देंहटाएंखिली कली कचनार की, दहका फूल पलाश
नव लतिकाएँ बाँचतीं, ऋतु का नया हुलास।
गदराई है डाली-डाली,
जवाब देंहटाएंचारों ओर सजी हरियाली,
कुहुक रही है कोयल काली,
वहा बड़ी सुन्दर और मन मोहक कविता की सरंचना की है आपने ........आभार
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
तुम मुझ पर ऐतबार करो ।
बढ़िया रचना-
जवाब देंहटाएंउत्सव शुरू है-
आभार गुरुदेव -
बहुत सुन्दर प्रकृति चित्रण
जवाब देंहटाएंlatest postमहाशिव रात्रि
latest postअहम् का गुलाम (भाग एक )
बहुत सुंदर बसन्ती सृजन,,,,
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत चित्रण
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंपौधों के मदमाने का मौसम है..
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रकृति चित्रण महाशिवरात्रि की शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंसुंदर चित्रण बसंत का तरुवर लहलहाए फूलों के संग
जवाब देंहटाएं