आई बसन्त-बहार, चलो होली खेलेंगे!!
रंगों का है त्यौहार, चलो होली खेलेंगे!!
बागों में कुहु-कुहु बोले कोयलिया,
धरती ने धारी है, धानी चुनरिया,
पहने हैं फुलवा के हार,
चलो होली खेलेंगे!!
हाथों में खन-खन, खनके हैं चुड़ियाँ.
पावों में छम-छम, छनके पैजनियाँ,
चहके हैं सोलह सिंगार,
चलो होली खेलेंगे!!
कल-कल बहती है, नदिया की धारा.
सजनी को लगता है साजन प्यारा,
मुखड़े पे आया निखार,
चलो होली खेलेंगे!!
उड़ते अबीर-गुलाल भुवन में,
सिन्दूरी-सपने पलते सुमन में,
महके है मन में फुहार!
चलो होली खेलेंगे!!
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गुरुवार, 21 मार्च 2013
"चलो होली खेलेंगे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जवाब देंहटाएंखेलो जी आप होली, बढिया रचना है।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय -
हम भी आ रहे हैं खटीमा, होली खेलने..
जवाब देंहटाएंहोली पर बहुत ही बढियाँ प्रस्तुति,आभार आदरणीय.
जवाब देंहटाएंहोली पर रंगीन छटा बिखेरती सुंदर प्रस्तुति,,,,
जवाब देंहटाएंRecent post: रंगों के दोहे ,
होली की शुभकामनाएँ ! सुंदर रचना..
जवाब देंहटाएंहोली का अनोखा रंग आपकी ये प्रस्तुति बहुत सुंदर होली कि अग्रिम बधाई हो
जवाब देंहटाएंहोली के रंगों में सराबोर रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना, बधाई.
जवाब देंहटाएंबड़ा कोमलता पूर्ण होली-गीत !
जवाब देंहटाएंहोली की अग्रिम वधाई !
रंगों से खेलने और खेलाने की कला आपमें अप्रतिम है गुरूदेव! होली की अग्रिम हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंरंग और रस से परिपूर्ण रहे होली !
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ...
पधारें "चाँद से करती हूँ बातें "
bahut badhiya bina holi khele chain kahan?
जवाब देंहटाएंहोलीमय रचना के लिए बधाई ,गुरु जी
जवाब देंहटाएंकभी कभी कोई एक पंक्ति ऐसा मन को छूती है, कि दिल बाग बाग हो जाता है...
जवाब देंहटाएंधरती ने धारी है धानी चुनरिया -
इतना मधुर है, कि पढ़कर ही कान में रस घोल रहा है :)
आपकी इस उत्कृष्ट रचना को अपने निम्न फेसबुक पेज पर साझा कर, बिना होली के ही रंग बिखेर रही हूँ :) सूचनार्थ.
https://www.facebook.com/pages/%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%82-%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%A6%E0%A5%80-%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B7%E0%A5%80-%E0%A4%B9%E0%A5%82%E0%A4%81/151949304899749?ref=hl