गाँव-गली और बाजारों में
घूम रहीं हैं टोली।
हुल्लड़ और धमाल मचाने, फिर से आई होली।।
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कोई पीकर भंग नाचता, कोई सुरा चढ़ाए,
कोई राग-रागनी गाता, कोई ढोल बजाए,
मस्तक-चेहरों पर चित्रित है लाल-हरी रंगोली।
हुल्लड़ और धमाल मचाने, फिर से आई होली।।
पश्चिम से पछुवा चलती है, पूरब से पुरवाई,
जाड़े का अब अन्त हो गया, रुत गर्मी की आई,
अम्बुआ की गदराई डालों पर, कोयल
है बोली।
हुल्लड़ और धमाल मचाने, फिर से आई होली।।
हरी बालियों ने गेहूँ की, धारा रूप सलोना,
दूर-दूर तक खेतों में, कंचन का बिछा
बिछौना,
डर लगता है घन जब नभ में, करता आँखमिचौली।
हुल्लड़ और धमाल मचाने, फिर से आई होली।।
जन-गण-मन की है अभिलाषा, रूठे मिलें गले से,
होली लेकर आती आशा, रिश्ते बनें भले से,
कल तक जो थे अलग-थलग, वो बन जाएँ हमजोली।
हुल्लड़ और धमाल मचाने, फिर से आई होली।।
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मंगलवार, 26 मार्च 2013
"आई फिर से होली" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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होली की बहुत बहुत शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंहोली की महिमा न्यारी
जवाब देंहटाएंसब पर की है रंगदारी
खट्टे मीठे रिश्तों में
मारी रंग भरी पिचकारी
ब्लोगरों की महिमा न्यारी …………होली की शुभकामनायें
होली की शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंहोली की बहुत बहुत शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंवाह, झूमे मस्तों की टोली।
जवाब देंहटाएं