जन-जन की अपनी ही
भाषा,
हिन्दी हुई परायी
क्यों?
दूर देश से चलकर,
भारत में अंग्रेजी आयी
क्यों?
माता के सुहाग की
बिन्दी,
वैज्ञानिक भाषा है
हिन्दी,
निर्मल-पावन जो पहले
थी,
अब मैली क्यों हैं कालिन्दी,
छोड़ मातृभाषा को
हमने,
अंग्रेजी अपनायी
क्यों?
दूर देश से चलकर,
भारत में अंग्रेजी आयी
क्यों?
देश-वेश-परिवेश
हमारे,
गौरैया ने छीन लिये,
गीत और संगीत
हमारे,
ताल-वाद्य से हीन
किये,
सम्बोधन में नहीं
तरलता,
कर्कश बोली भायी
क्यों?
दूर देश से चलकर,
भारत में अंग्रेजी आयी
क्यों?
पिंगल के हम स्वामी थे,
हम छन्दों के निर्वाहक
थे,
गीत-ग़ज़ल,
दोहा-चौपाई,
के हम ही संवाहक
थे,
भूल गये अपनी
विद्या को,
उसकी अंग लगायी
क्यों?
दूर देश से चलकर,
भारत में अंग्रेजी आयी
क्यों?
हमने अपने हाथों से
ही,
अपना “रूप” बिगाड़
दिया,
माता का सिन्दूर
पोंछकर,
अटल सुहाग उजाड़
दिया,
आज चमन के माली ही,
खुद नोच रहे अमरायी
क्यों?
दूर देश से चलकर,
भारत में अंग्रेजी आयी
क्यों?
|
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सोमवार, 15 सितंबर 2014
"भारत में अंग्रेजी आयी क्यों?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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वाकई सुन्दर विचारोत्तेजक प्रस्तुति !!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चिंतन
जवाब देंहटाएंअंग्रेज तो गए लेकिन अंग्रेजी थोप गए ...
सुन्दर भाव और शब्द ! वास्तव में अंग्रेज़ी एक आडम्बर की भाँति सर पर लड़ी है ! अबतो हिन्दी में सब का म आसान है ! फिर हिन्दी की लत एक गुलामी का प्रतीक नहीं है ?
जवाब देंहटाएंभाखा आपनी बोलिए, लिये पराई सीख ।
जवाब देंहटाएंरंग रस घोरें आपने, ले दूजन की लीख |226|
भावार्थ : -- "पराए की सिखाई नहीं बोलनी चाहिए" या पराए से सीख(ज्ञान)लेकर, अपनी भाषा ही बोलनी चाहिए या पराई भाषाएँ तो सिखनी चाहिए और बोलनी अपनी चाहिए । यदि लिपि भी पराई हो तो अपनी ही सभ्यता और संस्कृति के रंग भरने चाहिए क्योंकि भारत की संस्कृति एवं सभ्यता सबसे प्राचीन और सबसे श्रेष्ठ है ॥
बहुत सुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर , सवालों के जवाब को ढूँढने के प्रयास में जुटी रचना
जवाब देंहटाएंहमने अपने हाथों से ही,
जवाब देंहटाएंअपना “रूप” बिगाड़ दिया,
माता का सिन्दूर पोंछकर,
अटल सुहाग उजाड़ दिया,
आज चमन के माली ही,
खुद नोच रहे अमरायी क्यों?
दूर देश से चलकर,
भारत में अंग्रेजी आयी क्यों?
बहुत सुन्दर भाव की रचना है भारत की विशेषता है जो भी यहां आया उसको गले लगाया अपनाया। अंग्रेजी भी इसका अपवाद नहीं आज वह हिंगलिश है भारत के बाहर होगी अंग्रेजी।
bahut umdaa...
जवाब देंहटाएंदोष अंग्रेजी या किसी अन्य भाषा का नहीं है उसे अपनाकर निज भाषा को भुला देने वालों का है..
जवाब देंहटाएं