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भाव अपनी ग़ज़ल में
कैसे भरूँ
शब्द को अपने गरल
कैसे करूँ
फँस गया अपने बुने
ही जाल में
रास्ता अपना सरल कैसे
करूँ
तिश्नगी से कण्ठ
सूखा जा रहा
आचमन देकर तरल कैसे
करूँ
ज़िन्दगी में चाह
है, ना राह है
चश्म को अपनी सजल
कैसे करूँ
तन-बदन में पड़
गयीं है झुर्रियाँ
“रूप” को अपने नवल
कैसे करूँ
|
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मंगलवार, 23 सितंबर 2014
"ग़ज़ल-रास्ता अपना सरल कैसे करूँ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवार के - चर्चा मंच पर ।।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंदिनांक 25/09/2014 की नयी पुरानी हलचल पर आप की रचना भी लिंक की गयी है...
हलचल में आप भी सादर आमंत्रित है...
हलचल में शामिल की गयी सभी रचनाओं पर अपनी प्रतिकृयाएं दें...
सादर...
कुलदीप ठाकुर
BADHIYA KAVITA
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया !
जवाब देंहटाएंतिश्नगी से कण्ठ सूखा जा रहा
जवाब देंहटाएंआचमन देकर तरल कैसे करूँ
aapka isteqbaal kaise karoon...aafareen rachna guru jee
बहुत ही बढ़िया
जवाब देंहटाएंसादर
ज़िन्दगी में चाह है, ना राह है
जवाब देंहटाएंचश्म को अपनी सजल कैसे करूँ
...वाह..बहुत उम्दा ग़ज़ल..
बेहतरीन
जवाब देंहटाएंबढ़िया
जवाब देंहटाएं