जहाँ अरमान पलते हैं
वहीं पर दीप जलते हैं
जहाँ बरसात होती है
वहीं पत्थर फिसलते हैं
लगी हो आग जब दिल में
तो शोले ही निकलते हैं
कभी सूखे के मौसम में
नहीं दरिया उबलते हैं
शक्ल इन्सान की धर कर,
नगर में नाग छलते हैं
अमन के चमन में आकर
जुबाँ से विष उगलते हैं
सुरीले सुर बजें कैसे
विदेशी साज चलते हैं
“रूप” को मोम के पुतले
घड़ी भर में बदलते हैं
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रविवार, 7 सितंबर 2014
"नगर में नाग छलते हैं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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nihshabd....bahut khoobsurat!!!
जवाब देंहटाएंलाज़वाब
जवाब देंहटाएंbahut badhiya
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह बहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएं