कोलकाता से प्रकाशित
त्रयमासिक पत्रिका "उड़ान"
के प्रवेशांक (अगस्त-2014)
में मेरी बालकविता
"पेड़ लगाओ-धरा बचाओ"
जब गर्मी का मौसम आता,
सूरज तन-मन को झुलसाता।
तन से टप-टप बहे पसीना,
जीना दूभर होता जाता।
ऐसे मौसम में पेड़ों पर,
फल छा जाते हैं रंग-रंगीले।
उमस मिटाते हैं तन-मन की,
खाने में हैं बहुत रसीले।
ककड़ी-खीरा और खरबूजा,
प्यास बुझाता है तरबूजा।
जामुन पाचन करने वाली,
लीची मीठे रस का कूजा।
आड़ू और खुमानी भी तो,
सबके ही मन को भाते हैं।
आलूचा और काफल भी तो,
हमें बहुत ही ललचाते हैं।
कुसुम दहकते हैं बुराँश पर,
लगता मोहक यह नज़ारा।
इन फूलों के रस का शर्बत,
शीतल करता बदन हमारा।
आँगन और बगीचों में कुछ,
फल वाले बिरुए उपजाओ।
सुख से रहना अगर चाहते,
पेड़ लगाओ-धरा बचाओ।
|
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मंगलवार, 23 सितंबर 2014
"उड़ान में प्रकाशित-पेड़ लगाओ-धरा बचाओ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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वाह बहुत सुंदर बाल कविता ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सचित्र बाल कविता !
जवाब देंहटाएं: शम्भू -निशम्भु बध --भाग १
muh mein paani aa gaya...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति , आ. धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
बहुत सुन्दर सन्देश के साथ सार्थक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंकल 28/सितंबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
bahut hi badhiya
जवाब देंहटाएं