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ममता की मूरत माता की,
हरदम याद सताती है।
कष्ट-क्लेश दुख की घड़ियों में,
याद बहुत माँ आती है।।
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जीव-जन्तुओं को भी होते,
बच्चे प्राणों से प्यारे।
सुत हों या हो सुता,
जननि की आँखों के होते तारे।
नजर-टोक का लगा डिठोना,
माँ कितना सुख पाती है।
कष्ट-क्लेश दुख की घड़ियों में,
याद बहुत माँ आती है।।
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माँ खुद गीले में सोई,
सूखे में हमें सुलाया है।
रूखा-सूखा भोजन खाकर,
अपना दूध पिलाया है।
बच्चों में बच्चा बनकर माँ,
उनको खेल खिलाती है।
कष्ट-क्लेश दुख की घड़ियों में,
याद बहुत माँ आती है।।
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रिश्ते-नाते हमें बताती
सिखलाती जो भाषा है।
सरल-सरल होकर भी माँ की,
बहुत कठिन परिभाषा है,
माता ही तो सामवेद बन,
लोरी हमें सुनाती है।
कष्ट-क्लेश दुख की घड़ियों में,
याद बहुत माँ आती है।।
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नहीं उऋण हो सकता कोई,
माता के उपकारों से।
इसीलिए माँ की महिमा को
गाते सब जयकारों से।
परमपिता से भी महान,
माता जग में कहलाती है।
कष्ट-क्लेश दुख की घड़ियों में,
याद बहुत माँ आती है।।
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रविवार, 10 मई 2020
गीत "ममता की मूरत माता" (मातृदिवस पर विशेष)
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हृदयस्पर्शी गीत
जवाब देंहटाएंमां के प्रति श्रद्धा सुमन 🌹❤🌹💐🙏
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (04 मई 2020) को 'ममता की मूरत माता' (चर्चा अंक-3698) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
बहुत बढ़िया सर।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंदिल को छूने वाले भावों से सजी रचना !
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी भावाभिव्यक्ति आदरणीय .
जवाब देंहटाएंदिल को छूती बहुत सुंदर रचना, आदरणीय शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंआदरणीय, सरल शब्दों में माँ की ममता को रेखांकित करती सुन्दर रचना ! ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं :
जवाब देंहटाएंनजर-टोक का लगा डिठोना,
माँ कितना सुख पाती है।--ब्रजेन्द्र नाथ
माँ को सत सत नमन ,हृदयस्पर्शी सृजन सर ,सादर नमन
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी सृजन
जवाब देंहटाएं