ख़ाक सड़कों की अभी तो छान लो।
धूप में घर को बनाना ठान लो।।
--
भावनाओं पर कड़ा पहरा लगा,
दुःख से आघात है गहरा लगा,
मीत इनको ज़िन्दग़ी का मान लो।
धूप में घर को बनाना ठान लो।।
--
काल का तो चक्र अब ऐसा चला,
आज कोरोना ने दुनिया को छला,
वेदना के रूप को पहचान लो।
धूप में घर को बनाना ठान लो।।
--
रास्तों में धूप है और धूल है,
समय श्रमिकों के लिए प्रतिकूल है,
आदमीयत को जरा सा जान लो।
धूप में घर को बनाना ठान लो।।
--
'रूप' तो इक रोज़ ढल ही जायेगा,
आँच में जीवन पिघल ही जायेगा,
दानवों से सभ्यता का ज्ञान लो।
धूप में घर को बनाना ठान लो।।
--
|
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |

जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(३०-०५-२०२०) को 'आँचल की खुशबू' (चर्चा अंक-३७१७) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
**
अनीता सैनी
बहुत ही लाजवाब और सार्थक गीत
जवाब देंहटाएंप्रवासी श्रमिकों की व्यथा पर आपका यह सृजन स्तुत्य है 💐
जवाब देंहटाएंसादर नमन 🙏
आज के परिवेश पर रची गई सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएं