मेरा प्रिय गीत
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मोक्ष के लक्ष को मापने के लिए,
जाने कितने जनम और मरण चाहिए।
प्रीत की पोथियाँ बाँचने के लिए-
ढाई आखर नही व्याकरण चाहिए।।
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लैला-मजनूँ को गुजरे जमाना हुआ,
किस्सा-ए हीर-रांझा पुराना हुआ,
प्यार का राग आलापने के लिए,
शुद्ध स्वर, ताल, लय, उपकरण चाहिए।
प्रीत की पोथियाँ बाँचने के लिए-
ढाई आखर नही व्याकरण चाहिए।।
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सन्त का पन्थ होता नही है सरल,
पान करती सदा मीराबाई गरल,
कृष्ण और राम को जानने के लिए-
सूर-तुलसी सा ही आचरण चाहिए।
प्रीत की पोथियाँ बाँचने के लिए-
ढाई आखर नही व्याकरण चाहिए।।
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सच्चा प्रेमी वही जिसको लागी लगन,
अपनी परवाज में हो गया जो मगन,
कण्टकाकीर्ण पथ नापने के लिए-
शूल पर चलने वाले चरण चाहिए।।
प्रीत की पोथियाँ बाँचने के लिए-
ढाई आखर नही व्याकरण चाहिए।।
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झर गये पात हों जिनके मधुमास में,
लुटगये हो वसन जिनके विश्वास में,
स्वप्न आशा भरे देखने के लिए-
नयन में नींद का आवरण चाहिए।
प्रीत की पोथियाँ बाँचने के लिए-
ढाई आखर नही व्याकरण चाहिए।।
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गुरुवार, 14 मई 2020
गीत "ढाई आखर नही व्याकरण चाहिए" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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स्वप्न आशा भरे देखने के लिए-
जवाब देंहटाएंनयन में नींद का आवरण चाहिए।
प्रीत की पोथियाँ बाँचने के लिए-
ढाई आखर नही व्याकरण चाहिए।।
बहुत सुंदर सृजन।
ढाई आखर नहीं व्याकरण चाहिए। बहुत सुंदर अभिव्यक्ति! --ब्रजेंद्रनाथ
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुंदर रचना 🙏
जवाब देंहटाएंआशा भरे स्वप्न तभी देख पाएंगे जब सुकून की गहरी नींद नसीब हो; लेकिन आज हर किसी की नींद उडी हुई है तो स्वप्नों की तो बात ही छोड़िए।
जवाब देंहटाएंसादर
सच है, ढाई आखर से नहीं पूरे व्याकरण से ही जीवन के हर रूप को जाना जा सकता है. बहुत सुन्दर भाव.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसन्त का पन्थ होता नही है सरल,
जवाब देंहटाएंपान करती सदा मीराबाई गरल,
कृष्ण और राम को जानने के लिए-
सूर-तुलसी सा ही आचरण चाहिए।
प्रीत की पोथियाँ बाँचने के लिए-
ढाई आखर नही व्याकरण चाहिए
वाह!!!!
अद्भुत, उत्कृष्ट एवं लाजवाब सृजन।
प्रीत की पोथियाँ बाँचने के लिए-
जवाब देंहटाएंढाई आखर नही व्याकरण चाहिए।।
बहुत खूब कहा सर आपने ,लाज़बाब सृजन ,सादर नमन आपको