पता नहीं
कब तक रहें, हालत ये विकराल।
सभी कामना
कर रहे, सुधरें जग के हाल।।
--
मुखपट्टी
को बाँधकर, कब तक बैठें लोग।
ऐसे करो
उपाय कुछ, जिससे भागे रोग।।
--
तालाबन्दी
से हुआ, चौपट कारोबार।
आम-खास में
है मचा, अब तो हाहाकार।।
--
जान बचाने
के लिए, राह नहीं थी और।
झेल रहे सब इसलिए, बन्दी का यह दौर।।
--
क्रूर काल के
गाल में, समा रहा संसार।
कोरोना के
रोग का, अभी नहीं उपचार।।
--
अपने घर
में बैठकर, जनता रहे निरोग।
करना आपद
काल में, शासन का सहयोग।।
--
स्वस्थवृत्त
के नियम को, करो न चकनाचूर।
खुद को
भीड़-समूह से, रखना होगा दूर।।
--
|
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रविवार, 3 मई 2020
दोहे "बन्दी का यह दौर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जवाब देंहटाएंसादर नमन सर।
जब तक हालात नहीं सुधरते सभी सुरक्षित रहें, स्वस्थ रहें
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (04 मई 2020) को 'बन्दी का यह दौर' (चर्चा अंक 3691) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
बहुत ही सुंदर सृजन आदरणीय सर
जवाब देंहटाएं