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सूरज तन झुलसा रहा, दुनिया
है बेहाल।
गुलमोहर का हो गया, बूटा-बूटा
लाल।।
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जितनी गरमी पड़ रही, उतना
निखरा रूप।
गुलमोहर खिलने लगा, खा कर
निखरी धूप।।
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सड़क किनारे है खड़ा, केसरिया
को धार।
सब लोगों को बाँटता, मुलमोहर
उपहार।।
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गरम हवाएँ पी रहा, खड़ा अनोखा
सन्त।
जेठ मास में आ गया, मानो
पुनः बसन्त।।
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दुनियाभर को दे रहा, गुलमोहर
उपदेश।
खुश हो करके मानिए, कुदरत
का आदेश।।
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सुख-दुख दोनों में रहो, हरदम
एक समान।
जैसे सुख-दुख झेलता, निर्धन
श्रमिक-किसान।।
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कुदरत ने जो कुछ दिया, उस पर
है सन्तोष।
है गरमी के साथ में, बारिश का उद्घोष।।
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sundr gulmohr...
जवाब देंहटाएंगुलमोहर की सुंदरता का बेहतरीन चित्रण।
जवाब देंहटाएंसादर
इस दौर में कायनात पर और भी निखार आया है
जवाब देंहटाएंवाह्ह अति सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंप्रणाम सर।
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(१०-०५-२०२०) को शब्द-सृजन- २० 'गुलमोहर' (चर्चा अंक-३६९७) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
वाह!
जवाब देंहटाएंगुलमोहर पर मनमोहक छटा बिखेरता बहुत सुंदर सृजन।
सादर नमन सर।
बेहतरीन प्रस्तुति 👌
जवाब देंहटाएंदुनियाभर को दे रहा, गुलमोहर उपदेश।
जवाब देंहटाएंखुश हो करके मानिए, कुदरत का आदेश।।
बेहद सुंदर सृजन सर सादर नमन आपको
सुख-दुख दोनों में रहो, हरदम एक समान।
जवाब देंहटाएंजैसे सुख-दुख झेलता, निर्धन श्रमिक-किसान।।
बहुत सुन्दर और सार्थक सृजन .
वाह!!!
जवाब देंहटाएंअत्यंत सुन्दर ...गुलमोहर सी मनभावन कृति।
बहुत बहुत सुंदर!!
जवाब देंहटाएंसुख-दुख दोनों में रहो, हरदम एक समान।
जैसे सुख-दुख झेलता, निर्धन श्रमिक-किसान।।
सटीक सार्थक।