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आप की तथ्यपूर्ण आलेख के लिए नमन सर ! 👍👍👍
जवाब देंहटाएंअंग्रेजो के पहले मुग़लों ने हमारी संस्कृति के गुलाब के सुगंध को अपनी गलत मंशा के इत्र के फुहार से दफना दिया। इस सत्य पर कई पुस्तकें भी छप चुकी हैं, पर फिर भी हमारा गूँगा-बहरा और अँधा बना तथाकथित बुद्धिजीवी समाज अंधानुकरण करता जा रहा है किसी मूर्त्ति को विधाता मानने जैसा .. शायद ...
बहुत महत्वपूर्ण जानकारी, इस सत्य को अब प्रमाण की आवश्यकता नहीं रह गयी है.
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(०९-०५-२०२०) को 'बेटे का दर्द' (चर्चा अंक-३६९६) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
पर अभी भी हम सत्य को स्थापित करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं ! एक नामालूम सी सड़क का नाम बदलने पर तो उन्हीं अंग्रेजों के विघ्नसंतोषी विरासतिये आसमान सर पर उठा नाचने लगते हैं ! यह तो बहुत बड़ी चीज है ! पर आएगा बदलाव, जरूर आएगा
जवाब देंहटाएंताजमहल के सत्य से रूबरू करवाने के लिए आभार सर ,बात वही हैं कि -ये सत्य तो सब जान चुके हैं फिर भी असत्य ही भारी पड़ा हैं ,सादर नमस्कार आपको
जवाब देंहटाएंबहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी।
जवाब देंहटाएंआदरणीय डॉ रूपचंद शास्त्री मयंक जी, आपने ताज के इतिहास में लिपटी सच की परतों को परत - दर - परत खोलने की सार्थक कोशिश की है। पर अभी भी हमें वही पढ़ाया जा रहा है जो अंग्रेजों ने लिखा है। पूरे इतिहास को पुनः परिभाषित करने की जरुरत आ पडी है। आपका यह प्रयास युगीन और सार्थक है। -- ब्रजेन्द्र नाथ
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी इतिहास से इतना रूबरू कराने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद काफी सार्थक
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