कोमल,
कोंपल, नवपल्लव,
चंचलता
से लहराते हैं।
नाजुक
हरे मुलायम कल्ले,
ही किसलय
कहलाते हैं।।
चलना कहलाता
है जीवन,
सरिताएँ
ये कहती हैं,
इसीलिए अनवरत
चाल से,
कल-कल
करके बहती हैं,
सूरज और
चन्द्रमा हमको,
पाठ यही
सिखलाते हैं।
नाजुक
हरे मुलायम कल्ले,
ही किसलय
कहलाते हैं।।
आने के
ही साथ हुआ तय,
कब
किसको दुनिया से जाना,
खग-मृग,
वानर-नर को जग में,
श्रम से
चुगना पड़ता दाना.
जो मौसम
की मार झेलते,
वो जीवित
रह पाते हैं।
नाजुक
हरे मुलायम कल्ले,
ही किसलय
कहलाते हैं।।
जीवन का
है रूप निराला,
करता है
मन को मतवाला,
तिमिर
अँधेरे को हरने को,
दिनकर
करता नित्य उजाला,
जड़-चेतन
कुदरत की महिमा,
अपने स्वर
में गाते हैं।
नाजुक
हरे मुलायम कल्ले,
ही किसलय
कहलाते हैं।।
जो करता
है योग-ध्यान को,
योगी
वही कहाता है,
जो करता
आराम हमेशा,
वो रोगी
बन जाता है,
बिन पतझड़
के भी पेड़ों के,
पात स्वयं
झड़ जाते हैं।
नाजुक
हरे मुलायम कल्ले,
ही किसलय
कहलाते हैं।।
|
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शनिवार, 16 मई 2020
गीत "किसलय कहलाते हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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वाह अप्रतिम रचना 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंनाजुक, मुलायम, किसलयों को संयुक्त परिवार का संरक्षण मिले
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार(१७-०५-२०२०) को शब्द-सृजन- २१ 'किसलय' (चर्चा अंक-३७०४) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
बहुत बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंसादर
बेहद खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएं