काले बादल छा गये, बरसा नभ से नीर।
नन्द-देवकी का
हुआ, मन तब बहुत अधीर।।
--
वसुन्धरा पर
कृष्ण जब, ले लेंगे अवतार।
आरत-भारत देश
का, तब होगा उद्धार।।
--
धन्य किया
गोपाल ने, मथुरा-कारागार।
धरा-गगन में
हो रही, उसकी जय-जयकार।।
--
बन्दीघर में
कंस की, पहरे थे संगीन।
खिसक रही
वसुदेव के, पैरो तले जमीन।।
--
बालकृष्ण ने तब
रची, लीला स्वयं विराट।
प्रहरी सारे
सो गये, सब खुल गये कपाट।।
--
जब-जब
अत्याचार से, लोग हुए लाचार।
तब-तब लेते
धरा पर, महापुरुष अवतार।।
--
बढ़ते पापाचार
से, हुए सभी बेहाल।
कलयुग तुम्हें
पुकारता, आ जाओ गोपाल।।
--
जग के माया
जाल में, जकड़े सारे लोग।
भोगवाद के
दैत्य को, कौन सिखाये योग।।
--
जग-तप, पूजा-पाठ सब, हुए अकारथ आज।
सीधी-सच्ची
राह से, भटका हुआ समाज।।
--
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मंगलवार, 11 अगस्त 2020
दोहे "कलयुग तुम्हें पुकारता, आ जाओ गोपाल" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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