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सभी कोरियर बन्द हैं, पत्रालय लाचार।
कोरोना में कैद है, राखी का त्यौहार।।
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कोरोना में रह गया, अब मन में संकल्प।
राखी प्रेषण का नहीं, कोई कहीं विकल्प।।
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पावन-प्रेम प्रतीक के, सिसक रहे हैं
तार।
फोन और सन्देश में, सिमट गया है प्यार।।
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दूर-दूर बहनें बसीं, भाई हैं लाचार।
आना-जाना बन्द है, कैसे दें उपहार।।
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आया जीवन में नहीं, कभी निगोड़ा साल।
पर्व और त्यौहार का, बुरा हो गया हाल।।
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सिद्ध हो गया जगत में, चीन आज गद्दार।
पापी ड्रैगन-चीन को, कोस रहा संसार।।
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मानवीयता के किये, जिसने मानक ध्वस्त।
उसके क्रूर मजाक से, सारी दुनिया त्रस्त।।
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सोमवार, 3 अगस्त 2020
दोहे "सिसक रहे हैं तार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
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कुहरे ने सूरज ढका , थर-थर काँपे देह। पर्वत पर हिमपात है , मैदानों पर मेह।१। -- कल तक छोटे वस्त्र थे , फैशन की थी होड़। लेक...
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सपना जो पूरा हुआ! सपने तो व्यक्ति जीवनभर देखता है, कभी खुली आँखों से तो कभी बन्द आँखों से। साहित्य का विद्यार्थी होने के नाते...
शास्त्री जी रक्षा बंधन पर हार्दिक शुभ कामनाएं आपको सपरिवार |मैं तो आज तक दोहे लिखना सीख ही नहीं पाई |मुझे भी कोई तरकीब बताइये दोहे लिखने की |
जवाब देंहटाएंअसीम स्नेह सहित सभी भाई बहिनों को शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और सटीक प्रस्तुति आदरणीय
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंराखी बाँधो पेड़ को, अब बहनों इस साल।
जवाब देंहटाएंसन्देशा देता यही, कोरोना का काल।।
-- आज के माहौलमें बहनों के लिए सार्थक सन्देश । बेहतरीन दोहों के लिए साधुवाद।