मित्रों!
जब से मुखपोथी (फेसबुक) पर "लाइव काव्यपाठ" नया विकल्प आया है, तब से लगभग सभी समूहों में ऑनलाइन काव्यपाठ करवाने की होड़ लग गयी है। अच्छी बात है और लोग सुनने के लिए जुड़ भी जाते हैं। कुछ समय के लिए तो श्लेरोता दत्तचित् होकर सुनते हैं लेकिन जैसे-जैसे समय ज्यादा हो जाता है और वक्ता अपने शब्दों को विराम देता ही नहीं है तो लोघ छँटने लगते हैं और वाह-वाही के लिए मात्र आयोजक ही रह जाते हैं। तब ऐसे में काव्यपाठ का क्या लाभ है?
मेरा सुझाव है कि वक्ता को अपने बुद्धि-विवेक से काम लेना चाहिए और 30-35 मिनट में अपना साहित्य का भोग लगाना समाप्त कर देना चाहिए।
यद्पि मेरी बात कड़वी है इसलिए मुझे कहने में कोई संकोच भी नहीं है। देखिए इस परिपेक्ष्य में मेरे पाँच दोहे-
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लाइव का ऐसा बढ़ा,
मुखपोथी पर रोग।
श्रोताओं को छात्र
सा, समझ रहे हैं लोग।१।
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अभिरुचियाँ जाने
बिना, भोजन रहे परोस।।
वक्ताओं की सोच
पर, होता है अफसोस।२।
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शब्दों में यदि
जान है, बने सार्थक कथ्य।
वो ही पढ़ना
चाहिए, जिसमें हो कुछ तथ्य।३।
--
काव्यपाठ के हैं
लिए, तीस मिनट पर्याप्त।
सार-सार पढ़कर करो,
अपना काव्य समाप्त।४।
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अदबी लोगों में
बहुत, है कहास का लोभ।
आता अधिक सुनास
से, श्रोताओं में क्षोभ।५।
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शनिवार, 29 अगस्त 2020
दोहे "लाइव काव्यपाठ पर मेरे पाँच दोहे" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सुन्दर सृजन ।
जवाब देंहटाएंसुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया। सच है श्रोता ज्यादा देर तक सुनना पसंद नही करते!
जवाब देंहटाएंमान्यवर ! शुक्रगुज़ार हूँ आपका आप अपना समय निकालकर हौसला बढ़ाते रहे मैं देख न सका ,अब गलती दुरुस्त करता हूँ।
जवाब देंहटाएंलाइव का ऐसा बढ़ा, मुखपोथी पर रोग।
श्रोताओं को छात्र सा, समझ रहे हैं लोग।१।
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अभिरुचियाँ जाने बिना, भोजन रहे परोस।।
वक्ताओं की सोच पर, होता है अफसोस।२।
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शब्दों में यदि जान है, बने सार्थक कथ्य।
वो ही पढ़ना चाहिए, जिसमें हो कुछ तथ्य।३।
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काव्यपाठ के हैं लिए, तीस मिनट पर्याप्त।
सार-सार पढ़कर करो, अपना काव्य समाप्त।४।
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अदबी लोगों में बहुत, है कहास का लोभ।
कहास शब्द अभिनव प्रयोग ,निवेदित :
अब छपास संग बढ़ रहा ,
कह कहास का रोग।कहा सुना सब माफ़ है लगा कोरोना सोग।
बेहतरीन अंदाज़ अपने परम शास्त्री जी के।
blogpaksh.blogspot.com
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (31अगस्त 2020) को 'राब्ता का ज़ाबता कहाँ हुआ निहाँ' (चर्चा अंक 3809) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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-रवीन्द्र सिंह यादव
कुछ लोगों का पेट भर नहीं पाता है इतने कम समय में. वे सारा ज्ञान दूसरे के अन्दर घुसाने में ही लगे रहते हैं.
जवाब देंहटाएंवाह!!!!
जवाब देंहटाएंक्या बात ....
सटीक दोहे।
बहुत सुंदर और सटीक सृजन आदरणीय।
जवाब देंहटाएं