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त्यौहारों की धूम मची है,
पर्व नया-नित आता है।
परम्पराओं-मान्यताओं की,
हमको याद दिलाता है।।
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उत्सव हैं उल्लास जगाते,
सूने मन के उपवन में,
खिल जाते हैं सुमन बसन्ती,
उर के उजड़े मधुवन में,
जीवन जीने की अभिलाषा,
को फिर से पनपाता है।
परम्पराओं-मान्यताओं की,
हमको याद दिलाता है।।
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भावनाओं की फुलवारी में
ममता नेह जगाती है
रिश्तों-नातों की दुनिया,
साकार-सजग हो जाती है,
बहना के हाथों से भाई,
रक्षासूत्र बँधाता है।
परम्पराओं-मान्यताओं की,
हमको याद दिलाता है।।
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क्रिसमस, ईद-दिवाली हो,
या बोधगया बोधित्सव हो,
महावीर स्वामी, गांधी के,
जन्मदिवस का उत्सव हो,
एक रहो और नेक रहो का
शुभसन्देश सुनाता है।
परम्पराओं-मान्यताओं की,
हमको याद दिलाता है।।
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जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (24अगस्त 2020) को 'उत्सव हैं उल्लास जगाते' (चर्चा अंक-3803) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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-रवीन्द्र सिंह यादव
आपकी रचना की पंक्ति-
'उत्सव हैं उल्लास जगाते'
हमारी प्रस्तुति का शीर्षक होगी।
'ममता नेह जगाती है
जवाब देंहटाएंरिश्तों-नातों की दुनिया,
साकार-सजग हो जाती है,
बहना के हाथों से भाई,
रक्षासूत्र बँधाता है।
परम्पराओं-मान्यताओं की,
हमको याद दिलाता है।"
बहुत ही सुंदर ।
सादर
बहुत ही खूबसूरत गीत।
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