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अपने कुटिया-नीड़ को, रखते सभी सँभाल।
मगर टिकाऊ है नहीं, कपड़े का पंडाल।। -- कट्टरपन्थी मत बनो, रहना सदा उदार।
अन्धभक्ति से पूर्व ही, करना सोच-विचार।।
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मन में श्रद्धा हो भरी, कहते हैं विद्वान।
लेकिन है सबसे बड़ा, दुनिया में भगवान।।
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मतलब के संसार में, लो दिमाग से काम।
मन के भावों का कभी, बनना नहीं गुलाम।।
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पग-पग पर मिलते यहाँ, भाँति-भाँति के लोग।
ओछे लोगों का कभी, करना मत सहयोग।।
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तन से हों बौने भले, मन को रखो विशाल।
नदियों से बढ़ते चलो, मत बन जाना ताल।।
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बहता जल पावन रहे, सड़ता ठहरा ताल।
इसीलिए तालाब में, उग आते शैवाल।।
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शुक्रवार, 7 अगस्त 2020
दोहे "मन को रखो विशाल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जवाब देंहटाएंउत्तम भावबोध सकारात्मा सोच का दर्पण बनते हैं शास्त्री जी के दोहे। अपने कुटिया-नीड़ को, रखते सभी सँभाल।
मगर टिकाऊ है नहीं, कपड़े का पंडाल।।
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कट्टरपन्थी मत बनो, रहना सदा उदार।अन्धभक्ति से पूर्व ही, करना सोच-विचार।।--मन में श्रद्धा हो भरी, कहते हैं विद्वान।लेकिन है सबसे बड़ा, दुनिया में भगवान।।--मतलब के संसार में, लो दिमाग से काम।मन के भावों का कभी, बनना नहीं गुलाम।।--पग-पग पर मिलते यहाँ, भाँति-भाँति के लोग।ओछे लोगों का कभी, करना मत सहयोग।।--तन से हों बौने भले, मन को रखो विशाल।नदियों से बढ़ते चलो, मत बन जाना ताल।।--बहता जल पावन रहे, सड़ता ठहरा ताल।इसीलिए तालाब में, उग आते शैवाल।।वीरूसा.ब्लागस्पाट.कॉमveerusa.blogspot.comveerujialami.blogspot.comveerujan.blogspot.comkabirakhadabazarmein.blogspot.com
सारगर्भित दोहे
जवाब देंहटाएंतन से हों बौने भले, मन को रखो विशाल।
जवाब देंहटाएंनदियों से बढ़ते चलो, मत बन जाना ताल।
बहुत सुंदर दोहा।
बहता जल पावन रहे, सड़ता ठहरा ताल।
जवाब देंहटाएंइसीलिए तालाब में, उग आते शैवाल।।
-- सच है निरंतरता न रहे तो जीवन निष्क्रिय हो जाता है
बहुत अच्छी प्रस्तुति
सुंदर और वर्तमान को परिभाषित करती दोहे।
जवाब देंहटाएंबहता जल पावन रहे, सड़ता ठहरा ताल।
जवाब देंहटाएंइसीलिए तालाब में, उग आते शैवाल।।
बहुत खूब,बेहतरीन अभिव्यक्ति,सादर नमन
,बेहतरीन अभिव्यक्ति,सादर नमन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और सार्थक दोहे आदरणीय
जवाब देंहटाएं