धधक उठा उठा है आपदा से,
हमारे उपवन का कोना-कोना।
बहक उठी क्यारियाँ चमन में,
दहक रहा है चमकता सोना।।
चमक रहा है गगन-पटल पर,
सात-रंगी धनुष निराला,
बरस रहे हैं बदरवा रिम-झिम,
निगल रहे हैं दिवस उजाला,
नजर जमाने की लग न जाए,
लगाया नभ पर बड़ा डिठोना।
बहक उठी क्यारियाँ चमन की,
दहक रहा है चमकता सोना।।
ठुमक रहे हैं मयूर वन में,
दमक रही दामिनी गरज कर,
सहम रहे हैं सुहाने पर्वत,
डरा रहा घन लरज-लरजकर,
उबल रहे हैं नदी-सरोवर,
उजड़ गया है सुखद बिछौना।
बहक उठी क्यारियाँ चमन की,
दहक रहा है चमकता सोना।।
कहीं धूप है, कहीं हैं छाया,
कहीं है बारिश, कहीं है बादल,
सरहदों पर अब वतन की,
फिजाएँ लगती हैं आज पागल,
डरा रहा देश को है करोना।।
बहक उठी क्यारियाँ चमन की,
दहक रहा है चमकता सोना।।
सिसक रहे
हैं सुहाने मंजर,
चहल-पहल ने
किया किनारा,
खामोश हैं
आरती-अजाने,
नहीं आस का
आसमां में तारा,
आपदा में
हुआ है मुश्किल,
जिन्दगी के
वजन को ढोना।
बहक उठी क्यारियाँ चमन की,
दहक रहा है चमकता सोना।।
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शुक्रवार, 28 अगस्त 2020
गीत "डरा रहा देश को है करोना" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार (२९-०८-२०२०) को 'कैक्टस जैसी होती हैं औरतें' (चर्चा अंक-३८०८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
वर्तमान हालात का यथार्थ वर्णन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़ रही है आपदा! सही है .
जवाब देंहटाएंसिसक रहे हैं सुहाने मंजर,
जवाब देंहटाएंचहल-पहल ने किया किनारा,
खामोश हैं आरती-अजाने,
नहीं आस का आसमां में तारा,
आपदा में हुआ है मुश्किल,
जिन्दगी के वजन को ढोना।
बहक उठी क्यारियाँ चमन की,
दहक रहा है चमकता सोना।
बहुत ही सुन्दर समसामयिक सृजन।